Thursday, 18 September 2014

बिसात




फैली हुई  बिसात पे  चलते  चलते
खुद  की  बिसात  से  सामना हुआ 

प्यादे  की  तरह  बढ़ते  कदम  और 
वो  कहते रहे की  मंजिल सामने है

कहते रहे ; बस एक कदम बढ़ा लो 
और मंजिल खुद सामने खड़ी होगी 

इन निर्देशन को मानते हुए कई बार 
श्रेष्ठ दस की श्रद्धा में आकंठ प्यादे 

शुरुआत , तो कभी बीच में , तो कभी 
अंत से पहले भी बार - बार शहीद हुए 

और एकदम आखिर  में पता चला की -
श्रद्धेय दस भी इस खेल का हिस्सा थे

चौपड़ पे सजे मोहरे इधर के भी और 
उधर के भी ; वो प्रथम शानदार दस

सबको खेल खिलता  " वो "  अनजान
अनदेखा निर्बोध बिना प्रयोजन लिप्त



Om

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