Thursday, 25 September 2014

मौन -मित्र

ले जाओ मौन-मित्र मुझे बहा के -
             चंचल सागर की लहरो के ऊपर 


डोल रहे कुछ पत्ते उलझ वहां -
              चक्रवातीभंवरजलजाल थपेड़ों में


आहिस्ता से मौन मेरे मुझे -

                उतार हाथ पकड़ रख मेरा वहीँ 


चुन चुन बिन बिन हर पत्ते -
               को तर्पण दे पुनः लौट के आऊं


आस्था का धागा पकड़ उन -
              लहराती लहरो के ऊपर लहराऊँ


ले चल मौन मेरे हृदयस्थल -
               समंदर की अथाह गहराइयों में


वो पत्ते ही नहीं नयन द्वार 
               सों बह भीगा मन का कोनाकोना 


सुखाना इन अंतस्क्षणो को 
               शून्य वायु के स्निग्ध थाप संग 


सूखते ही पत्ते विलीन हो चलेंगे  
               पुनः स्वधर्मित मूल पंचतत्वों में 


रह जायेगा एक भीगा सा मन 
             और दूजा अद्भुत  व्योम का संग

ॐ 

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