Monday, 29 September 2014

थईया .. थईया




प्रियतम,खेलखेलते हमसंग
जबकि तुममेअतिअल्प हम
तुम  हममे  सम्पूर्ण  बृहत्तम
बिन  नैनं  की  ज्योति  बन
दीप प्रज्वलित तुम जलते ह्रदय द्वीप में

तुम्हारे नैन से देखू जग को
तुम्हारी ही वाणी  बोलू
श्रवण  तुम्हारा शरणागत हूँ
जो तुम चाहो संग संग डोलू
लड़ना झगड़ना तुम संग
जबतक बिखरा छितरा हूँ इस निर्जन वन में

तुमने तोडा  तुम ही जोड़ो
तबतक सहना प्रेम की मार
प्रेम में रहना निर्बोध को सहना
क्रोध  लोभ मोह  सब अर्पित
गुण अवगुण  समर्पित जान
अंतकाल में इस छोटी बूँद को
चाहूँ के  मिल जाऊं  प्रियतम  छीरसागर में

गीत गजब अजब तान
पृथ्वी डोले अम्बर  डोले
सुरअसुर ग्रह मंडल डोले
माया  नाचे माधुरी नाचे

कणिका अणिका नाचे
गणिका  मणिका नाचे
ढूंढ ढुङाईयां मची मंडल में
नाच नचईया  दूर गगन में
ताता थैया करते प्राण अद्भुत परम नृत्य में

न छोड़े पलभर भी तुझको
मोहित समस्त ब्रह्माण्ड
ना आदि  न अंत ही पाया
उन तारागण की धूलकण

पावनधरती में जन्मे हम
सूक्ष्मतम अस्तित्व हमारा
नाभिकेंद्र से ये केंद्र जुड़ा है
अलग कहाँ हम जी पाएंगे
द्वैत्व में जन्मे मिल जायेंगे  तुझ अद्वैत्व में


Separation for any cause ( lord you know better , it may be under your ignorance or in awareness), two energies get Separated , and from Years  rotating  on self axis  and  beloved your's axis ..................

Science  says , ' separated  two part  of magnet of  , always attract  as on opposite poles ..  so in big separation   I will fight with you  in duality  i will love  you and will get merged in you One day ;  in vyom (vast) Oneness

you divided  your energy .. and i am  attracted  to you , and you are attracted to me , i am tiny  so my full search is  small . you are big  and your attraction is bigger . I am  towards you   and you are towards me ...

truly ...
when designed by you for reason higher dignitaries passed with time  with all wisdom , understood well to you but can not explained well to you Other than " Om " .thought  they talked  they write , collected  bunch  made  shastras .still process is continues.....   i am very tiny ... absolutely nothing   who m i !... very tiny dot in your  kingdom of galaxies;  trying to understand and trying to connect with you actually , and you are smiling !
very mystic smile ! but I love your mysticism , love to my effortless efforts and you full in efforts to call me though looks effortless ...
Om Agreed  with your Maaya !!


चुम्बक नृत्य 

तीन  लोक  में  माया   नाचे  
धरती   नाचे ,  अम्बर  नाचे 
इंद्रधनुषी  रंग  मिलके  नाचे 
पंच तत्व  संग   ऊर्जा   नाचे 

द्वार पाल  संग  राजा  नाचे 
ग्यानी  नाचे  , ध्यानी  नाचे 
 ममता    नाचे    प्रेमी    नाचे 
भोगी     नाचे    योगी   नाचे

कान्हा  नाचे राधा गोपी नाचे
 कृष्ण  संग  कुरु -पाण्डु  नाचे 
मीरा कबीरा  संग तुलसी नाचे
राम  संग  सीता  रावण  नाचे

देवकुल नाचे  राक्षसकुल नाचे
व्यास भृगुसंग ऋषिकुल नाचे
 मोहिनी नाचे आदिशक्ति नाचे
शंकर नाचे विष्णु  ब्रह्मा नाचे

  नदी  ताल  तड़ाग   सब   नाचे 
  तीरथ     नाचे    मंदिर    नाचे 
  मस्जिद  चर्च  गुरूद्वारे  नाचे 
नाच  नचईया  सब सँग मिल
  ता .. ता  थईया .. थईया  नाचे 



  

Sunday, 28 September 2014

दुधारी-बेला


 स्वागतम



मिलन


खुशियों का जन्म , ढोलक मंजीरे 
नृत्य संगीत  में डूबे बहकते दिन और रात 
शक्ति की शक्ति बिन बात  के उल्लसित जीवन 
मिलन का मधुमास स्वागतम सुस्वागतम 

पुष्पों का लहराना हवाओं  का बहना 
लहरो का मचलना , सुगन्धो का बिखरना 
होठों पे खेलती  मुस्कराहटें , खिलखिलाते बचपन 
मचलता हुआ योवन  स्वागतम सुस्वागतम

जीवन प्रवाह में वेग सरिता है  यौवन 
साहस शौर्य  चपलता  उत्साह  क्षमता पुत्र पुत्री 
पति पत्नी का साहचर्य , बन्धुबन्धाव का सहयोग 
उफान जोश जीवन का स्वागतम सुस्वागतम


विदाई 



जनम दे जतन से लालन पालन किया  प्रेमभाव से
दुःख में रोये हँसे सुख में संगसंग सुन प्राणो से प्रिय

ह्रदयशक्ति से संवारसंभाला अब धूलिबेला हो चली
दुआ को दो हाथ उठे , आशीर्वाद रहे  तुम संग  सदा !

आँखें अपलक दूर तक देखतीं देर तक उस रस्ते को
जिस राह से गुजर तुमने आगे को कदम बढ़ा दिया !

नदी की गति, समय की चाल , काल का गाल नदेते
अवसर  पुनः, नहीं लौटते वापिस  उसी देह में प्राण !

वो ही जल नहीं मिलता नदी में प्रक्षालन को  दोबारा
जानेवाला  बह गया , रहनेवाला  साथ यही रह गया

उठी  लहर का गिरना, खिलते फूल महकते  मिटते
जन्ममेंमृत्यु मिलनमेंवियोग वृत्तियाँ पूर्व नियोजित

मुक्त गगन के पाँखी उड़ने की बेला से पहले; आ !!
तुझे निहार अश्रुपूरित नयनो से चूम प्रेम-विदा दू !

आत्मप्रिय जीवनदर्शनी प्रिय राह के मुसाफिर मित्र
अति  भावभीनी संवेदनशील आज तुझसे विदाई लूँ  ! 

Friday, 26 September 2014

ऐ जिंदगी !


जिंदगी ! आ तुझसे  गुफ्तगू करें
थोड़ा तुझे जाने  थोड़ी  अपनी  कहें   ,
कैसे बिना सर पैर के भागती रहती
जैसा चाहे वैसा रूप दिखती चलती
शिव  के नृत्य औ वीणा  स्वर में तू
गजानन  के मंगलवाद्य  में  तू  ही


बाल्य की निश्छल किलकारी में तू
आह!त्रासदी चीखो अश्रुओं में भी तू
ऐ जिंदगी ! जन्म  लेती खुशियों में
अंतिम श्वांस लेती थकान में भी तू
पहाड़ो  के निश्छल  सौंदर्य में तू ही
तूफानो में समायी  महाप्रलय तू ही


कोमल फूलों की सुगंध में  समायी
सिंह  गर्जना में शक्ति बन  प्रकटी 
जीवन के कोपल फूटते तुझ से  ही
विनाश का महाताण्डव  भी तुझमे
अंगारेफेंकता प्रज्जवलित धरागर्भ
आहट देती चाप  जलकल तरंग में


विरोधाभासी तेरा  सौंदर्य  स्वीकृत
शक्तिपाद करते गंगाधर  चंद्रधारी
परमशिवा  सर्वशक्तिशाली  नमन
वंदन  बारम्बार अद्भुत  कलाकार
लीलाधर की लीला  संभव-असंभव
आदि से अंत तक  जिंदगी-जिंदगी




Thursday, 25 September 2014

मौन -मित्र

ले जाओ मौन-मित्र मुझे बहा के -
             चंचल सागर की लहरो के ऊपर 


डोल रहे कुछ पत्ते उलझ वहां -
              चक्रवातीभंवरजलजाल थपेड़ों में


आहिस्ता से मौन मेरे मुझे -

                उतार हाथ पकड़ रख मेरा वहीँ 


चुन चुन बिन बिन हर पत्ते -
               को तर्पण दे पुनः लौट के आऊं


आस्था का धागा पकड़ उन -
              लहराती लहरो के ऊपर लहराऊँ


ले चल मौन मेरे हृदयस्थल -
               समंदर की अथाह गहराइयों में


वो पत्ते ही नहीं नयन द्वार 
               सों बह भीगा मन का कोनाकोना 


सुखाना इन अंतस्क्षणो को 
               शून्य वायु के स्निग्ध थाप संग 


सूखते ही पत्ते विलीन हो चलेंगे  
               पुनः स्वधर्मित मूल पंचतत्वों में 


रह जायेगा एक भीगा सा मन 
             और दूजा अद्भुत  व्योम का संग

ॐ 

Wednesday, 24 September 2014

मधुशाला प्रियतम तेरे प्रेम की

मधुशाला 
प्रियतम तेरे प्रेम की 



कहते  है " जबकृष्णा की बांसुरी बजती है तो 
राधा ~रानी  सुख  की  नींद  सोती  है  " और
घंटा-घड़ियाल,मृदंग,शिवडमरू की टंकार 
मानव लौकिक चेतजागरण के आधार 
ये सुख की नींद जो है राधारानी की 
मानव की लौकिक-जागृत-चेतना
 है ! समस्त माया  का विस्तार 
 समाया हृदयस्थल में। 
 इस निद्रा  में पीड़ा 
खेल संवाद 
 सारे भय  
विध्वंस 
दुर्घटना
 भूकम्प 
 विछोह 
 अवसाद 
सौंदर्य 
सर्जन 
~प्रेम
 मिलन 
नर्तन 
संगीत 
सुगंध 
  मधुमास
  लास्यलीला 
  समस्त कला 
  सांसारिकनिद्रायुक्त   
 अनाहत का संगीत ही तो है 
 कृष्णा की बांसुरी की धुन ही तो है,जिसकी  
मधुर तान सुन राधारानी को सुखद नींद आती है 
   और तुम हो कहते हो कि लोग मर के चिरनिद्रा में जाते है 
  कैसी माया कैसा अज्ञान! तुम तो अभी चिरनिद्रा में ही नजर आते हो 

Tuesday, 23 September 2014

तुम भी बुद्धा हो सकते हो ( Fallen Leaves )



तुम  भी  बुद्धा  हो सकते हो 
बैठ वृक्ष  से  बातें चन्द  करो !

गिरती  सहज   वृक्ष  छोड़ती  
पीली  सूख   झरती  हुई  पत्ती 

प्रकति  से  दोबातें  करके देखो 
पूर्णस्नेह उसपे लूटाके देखो 

जन्ममृत्यु जिज्ञासा वेदना बन  
खट-खटाये  द्वार  ह्रदय  का 


स्वीकृतिसंग मरामरा कहकह के  
तुम ऋषिमुनि  हो सकते हो 

जन्म  मृत्यु  रहस्यो को भेद के 
तुम भी जीसस  हो  सकते  हो 

उसपार की छलांग  लगा के देखो 
तुम  भी  कृष्णा  हो सकते हो 









विष्णुगर्भस्वप्नरहस्य



विष्णुगर्भ ही क्यों  स्वप्न का केंद्र क्यूंकि  विष्णु  स्वभाव में ही तो समायी है  ये समस्त  ब्रह्मांड के जीवन की कला , ब्रह्मा  शक्ति  सिर्फ सृजन के जिम्मेदार  है , और शंकर  समाप्ति की ओर , तो समस्त स्वप्न स्वप्न के स्वप्न उत्पन्न होने की स्थति  विष्णु  के अंदर ही समायी है,पालनकर्ता के समस्त गुणों का संगृह युक्त  श्री पति  विष्णु  , माया के आश्रयदाता भी है , इनकी शक्ति  ही से  मनुष्य को  ज्ञान  का आभास हो के भी  माया से भर्मित रखती है। जन्मजन्मांतर  जीव अपनी ही अज्ञानता में  उलझा हुआ भटकता  रहता है।  इस चित्र के समान ही , संकेत रूप में  विष्णु की सत्ता को , व्योम में  मानना है , कल्पना कर सकते है की  ये शक्ति  व्योम में वातावरण के समान व्याप्त है , जिससे  जगत में जीव संरचना  हुई उत्पति  और विनाश  हो रहा है। संभवतः अन्य  मंडल में भी ऐसा ही जीवन हो , जिसकी खोज जारी है >>>> 

ओम ओम ओम 


सपनो  से परे क्या  होगा ! इनसे अलग जीवन क्या होगा !
सपनो  की  गर्त  में  सपने  उनके  भी  गर्भ  में बस  सपने

स्वप्न चक्र  में उलझे जीव  देखते जाते नित नूतन सपने
उनके भी अंदर  उलझे  सपने और  सपनो के अंदर सपने

कितने सपने  है जो कट चुके , कितनो का कटना  बाकी है
कितना जीवन भेंट समझ जी चुके कितना जीना बाकि  है

इस जन्म  के, उस जन्म के सपने, जन्मांतर  के भी सपने
महीने सालों सुबह शाम रात मौसम जैसे आते जाते सपने

सपनो  में  जीते  हुए  जान  लिया  , सपना ही  देखते सब
ज्ञानीध्यानी मकानीदुकानी रोगीनिदानक  योद्धा शोध्दा

भटकन को जाना , मोहिनी  को मोह-अवस्था में पहचाना
सौभाग्य  है मिला  दुर्लभ  जागरण - जागृत के दर्शन  का   ,

सपने में जागते हुए, स्व को जगाते हुए का, सपना देखते है
खातेपीते,हँसतेरोते,भावावेश में चिल्लाते गाते फिर सोते है

जागने की कोशिश में  बार बार नींद से नींद में जग जाते है
ये भी बहुत है की,स्वप्न में स्वप्न का बना हुआ अहसास है

इससे ज्यादा साक्षित्व  और  मृत्यु का अनुभव  क्या होगा !
ये भाव सम्पूर्ण नहीं,पूर्णता की गहनता  का बिंदु  भी  नहीं।

पूर्वप्रबंधन सुनियोजित सकुशल भी  हो तो ज्यादा अर्थ नहीं
वास्तविक परीक्षा से सफलतापूर्वक पारहोना कुछ और ही है

बाकि  छलावा  है बस उस पल को  जी जाना  कुछ और ही है
परमसत्यसाक्षात्कार अनुभव  से गुजरजाना कुछ और ही है

उल्लेखित समस्त चित्र  स्वप्नवत निहित सत्य संकेत मात्र
फैली ऊर्जा की सत्ता चहुँ ओर,संग्रहित जहाँ वहीँ जीवन जान !

ॐ 


सोचो तो एक बार जरा !




दोस्तों किसकी पूजा करते हो !
सोचो तो एक बार जरा

ऊर्जा ! शक्ति ! या के भक्ति की
किसकी पूजा करते हो ?

हर साल जन्म से ले मृत्यु तक
किसको माला पहनाते हो

चाहतों कामनाओ वासनाओ का
किसका आह्वाहन करते हो

भाव से ज्ञान से श्रद्धा से किसको
भावसुमन अर्पण करते हो

अक्षत किसको लगाते किसको
लड्डू का थाल दिखाते हो

तत्व को ! या उस परा तत्व को
जिसको जरुरत ही नहीं

जो मात्र भाव से खड़ा हो जाता
उसको साधना चाहते हो

क्या चाहते हो उस से सच में
सोचो तो एक बार जरा

Om Devi



Ya devi ... sarv bhuteshi .... gyan rupen sansthita
namastasye namastasye namastasye namo namh
या देवी सर्वभूतेषु ; ज्ञान रूपेण संसस्थिता 
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमोनमः

भूल ना मानव स्वविकास कथा





रे मानव ! पहचान स्वयं को 
अपना ही अक्स जो भूलगए 
शहरों कस्बों में रहते - रहते
जंगल का वो रहना भूल गए 

याद करो वो आरंभिक काल
याद करो वो जंगल का राज
याद आएँ  गर  वो दिन रात
याद करो "अपनों" का साथ

निःसहायआक्रामकता सहते
दण्डकवन में छुप सहमेरहते
पत्थर-शस्त्र खोज कर स्वयं
के भय पे प्रथम विजय पाली

वस्त्र मुक्त भोजन आदि का
मात्र आखेट  एक ही जरिया
न संघ  न संघीय शक्ति, वो
घना जंगल और  जंगलराज

पत्थर घर्षण से अग्नि खोज
पश्चात अन्न धन  की खोज 
जल वायु संग स्वतंत्र जीवन
कभी वीर,कभी भयभीत तुम 

मौसम का वेग,जीवों की घात
कैसा सघन कठिन था जीवन
सुविधाओं की परिभाषा छोटी
आश्रयमात्रसे होती भयमुक्ति 

दूजा विकास क्रम जीव मित्रता 
तीजा परिश्रम था किसानी का
चौथा  प्रयास  वस्त्र आच्छादन
जिससे प्रभावित तन मन दोनों 

दोबारा वहीं ढूंढो बिसरे निशान
उन चापों के संग क्रमशः  बढ़ो-
आज की ओर, संभव हो स्पष्ट
शक्ति विकास भावपतन दृश्य 

डोर मत  छोड़ना,जो शुरुआती
बहुत फिसलन है बीच राहों में
विज्ञान/ धर्म स्थापन से पहले
तुम क्या थे! मूल पकड़ रुकना

वैज्ञानिक उन्नति  का इतिहास
आध्यात्मिक अवनति की कथा
क्या मानव सभ्यता की जड़ में
मंत्र- तंत्र -ग्रन्थ थे ! नहीं - नहीं

वो  इत्र क्या था ! जड़ें थी क्या !
इस पूरे विकास के इतिहास की
इक  प्रेम दूजा भय थे मूलाधार
आज भी यही दो गड़े है नीव में!

धार्मिकों ने इनको ही अर्क बना
परमार्थ  का रास्ता  सुझा दिया
विज्ञानं को भाया भय से लड़ना
कठिन बुद्धि से प्रेम को पाना !

विज्ञानं  तर्कसंगत प्रमाणपूरक
धर्म / अध्यात्म तरंगो का जाल
एक ने प्रमाण से हर  भय जीता
दूजेने प्रमाण रहित भय को हरा!

सम्पूर्णउन्नतिमूल में भय प्रेम
अंतिममंजिलफिरभीसबकीएक
समस्तकर्मबीज का एकआधार 
मानव निधि  हो मानव के लिए

कितनी भी ऊँची  उड़ान  भर लो
भूल ना मानव स्वविकास कथा!
सीमाओ की , भय की,  प्रेम की
भूल ना मानव स्वविकास कथा!

भूसहित तीनो मंडल स्वामी बन
भूल ना मानव स्वविकास कथा
ईश्वर प्रदेश  छू के भी आ जाना 
भूल ना मानव स्वविकास कथा!

Thursday, 18 September 2014

पाया एक धागा




पाया एक धागा 
जिसके दो छोर ....

पता नहीं कैसे 
विषय बदलते है 
रंग भी बदलते है
छोर वहीँ के वहीँ
दोनों किनारो पे
अड़े-जमे-खड़े है

गजब का खेल
धागे पे चलना ....

सीधे चलते धागे पे
इसछोर से उसछोर
भासते लम्बे रास्ते
शीर्ष  बिंदु मिले तो
आरम्भ और  अंत
एक  ही   हो  जाते
जहा   से  आरम्भ
अंत भी   वहीँ खड़ा
एकदम  आसपास 


Om 

बिसात




फैली हुई  बिसात पे  चलते  चलते
खुद  की  बिसात  से  सामना हुआ 

प्यादे  की  तरह  बढ़ते  कदम  और 
वो  कहते रहे की  मंजिल सामने है

कहते रहे ; बस एक कदम बढ़ा लो 
और मंजिल खुद सामने खड़ी होगी 

इन निर्देशन को मानते हुए कई बार 
श्रेष्ठ दस की श्रद्धा में आकंठ प्यादे 

शुरुआत , तो कभी बीच में , तो कभी 
अंत से पहले भी बार - बार शहीद हुए 

और एकदम आखिर  में पता चला की -
श्रद्धेय दस भी इस खेल का हिस्सा थे

चौपड़ पे सजे मोहरे इधर के भी और 
उधर के भी ; वो प्रथम शानदार दस

सबको खेल खिलता  " वो "  अनजान
अनदेखा निर्बोध बिना प्रयोजन लिप्त



Om

जिंदगी क्या है !



जिंदगी क्या है !अनुत्तरित उत्तरित 


किसी ने कहा   रंग 
किसी ने कहा वख्त 
किसी ने कहा दर्शन 
किसी ने कहा  दृश्य 
किसी ने कहा भक्ति 
किसी ने कहा शक्ति 

मुझे तो मिली
सांस-सांस झरती 
पलपल फिसलती 
कैप्सूल में बंद। ...
खुशबु बिखेरती 
सौंदर्य में जीती

नम वो पानी सी 
राख जो रेत सी
तिल तिल घटती 
पल पल बढ़ती 
जिंदगी ये जिंदगी 

आसान बुद्धि के लिए
जटिल अनुभव के लिए 
सरलतम बहाव के लिए

Om

Saturday, 13 September 2014

गुलाबों को और महकने दीजिये





जिंदगी उलझती तब है 


जब सवालो के जवाब नहीं होते 


उनको क्या कहियेगा 

जिनके पास सवाल ही नहीं होते 


उलझी गांठो के पेंचोखम

सुलझने के आसार भी नहीं होते


सुकूँ को दीजिये सुकूँ

गुलाबों को और महकने दीजिये


गम को यूँ गलत कीजिये

पहचान के जानपहचान न कीजिये


चंद लम्हे ये गुजरते हुए

सुलझे है; सुलझा ही रहने दीजिये

विस्मृतप्रदेश







पनी जन्म विधि परिधि जो भूल गए
वे पीड़ाएँ विस्मृत सुरक्षित मनपटलमें

गर्भप्रदेश की अंधीगलियों का विचरण
दम घोंटता धक्का देता प्रसव संकुचन 

शक्तिहीन अन्जान बहते बाहर गिरते
कैसे!कहाँ!,पता नहीं, मालूम नहीं क्यूँ!

पने जन्म प्रक्रिया तुम भूल गए क्या
गर्भ को दौड़े थे स्मरण कर उस पल का

माता प्रसव वेदना सबकी  देखी  जानी
तनिक अपनी भी गति सुध ले अज्ञानी 

मौन हो तेरी प्रसवपीड़ा दर्द था तूने सहा
ये और बात  के आज  वो सब भूल गया  

दाई का प्रसव कराना वो नस्ल परीक्षण
आगंतुक का स्वागत वो उत्सव मनाना

वो ही प्रसव तत्जनित पीड़ा याद करना
इसी जीवन में दोबारा जन्म जो है लेना  

उतरे नीचे ह्रदयभाव पे,वयस्क से शिशु  
शिशु से भ्रूण बन सहें पुनःप्रसव पीड़ाये

भ्रूण से भूली स्व की चिरपरिचत कहानी 
जातक मुख से स्व जन्मपीड़ा कभी सुनी 

द्भुत अनोखा किन्तु सच विस्मृत सा
कहो मित्र ! कुछ याद आया वो गर्भकाल

इन्द्रियां अक्षम,शरीर पंखुड़ी सा नाजुक  
पानी में जीवन डोर मात्र नाभि का जोड़  

याद करें  संकुचित  सूक्ष्म तरल  अँधेरा 
याद करें फिर वो अंधी गलियों में बहना

याद करें इक्छा विपरीत धरती पे गिरना
याद करें पहला रुदन,कारुणिक चीत्कार

याद करें  वो  पीड़ाएँ याद करें प्रसव काल
याद करें  टुकटुक निहारना अजनबी बन 

याद करें भाषाहीनता यादकरें मौनसंवाद
याद करें परमऊर्जा से वो स्व साक्षात्कार


ध्यान ! स्वप्निलजीवन से बाह्य निकल 
यादकरें नौ महीने का गर्भप्रदेश का काल




Friday, 12 September 2014

तुम ही कुछ बतलाओ !


हीं दूर ज्यूँ आस्मा में बिजली कौंधती हो 
पानी पे मिलती बिछड्ती लहरे मचलती हो 

कही ज्यूँ तेज आंधिया उड़ाए लिए जाती हो 
कैसे  सब कह पाओगे! जो महसूस किया  है 

शब्द  निकम्मे  अर्थहीन-अर्थ बखूबी कहते 
अर्थ की बातचली प्रथम वे ही साथ छोड़चले 

भाषा नगरी में मौन की बात कौन समझेगा 
तुम्हारी  मेरी  भाषा में शामिल मैं और तुम 

रंगमंच सी दुनिया में बसते है अदाकार लोग 
फिर कहते सब मिल नाटक क्यूँ करते लोग 

हज सितारों,सुंगधित पुष्पों, बहती हवाओं 
अंगारे उगलते ज्वालामुखी, भूकम्प ,तूफ़ान 

ऊँचेऊँचे समुद्रीतूफान,कड़कडाती बिजलियाँ  
टूटतीपर्वतशिलाये,पिघलतीबर्फजलराशियां 

तुम ही कुछ बतलाओ,मदमस्त ग़ाफ़िल ये 
कौन ठिकाना इनका क्यूँ कर जन्मे धरा पे!

कब तक रह पाएंगे कब उखड राख हो जायें 
क्यूँ ये  गर्वित ! कहाँ राज्य करना उन्मादी! 

समझाने का कार्य बखूबी तुम्हे करना,कृष्णा 
शिव समझाते नहीं, मालूम है ना सब तुमको!

ज्ञानी  बालक, होते समान अबोध निर्बोध 
मदांध कैसे मद मुक्त, रोगी  कैसे स्वस्थ हो !

जीवन मात्र  नाटक सदृश जीने योग्य रहेगा 
हर बार अंधकुंए में गिरने को दिल न करेगा 

एकबार भूले से इनकी भूली यादे वापिस आये 
निश्चित इस रंगमंच में,आत्मा ना खो पायेगी 


Thursday, 11 September 2014

trust on own path




Want to understand but difficult to get mean anyways ! 

as one funda always true , rise above of all prejudice 



There is level difference in thoughts give gaps to mind 

journey for everyone is same on life orbit , than what !



Never weigh on scale of right  & wrong in any relation 

fill level-gap,come on same platform no up or no down



Only platform different, Station even Direction is same 

still not works,leave it on destiny,time will tell own way


Wednesday, 10 September 2014

प्रिय पुरुष : चिठी


प्रिय पुरुष ! चिठी तुम्हारे नाम की 
लिखने को बहुत कुछ है,शब्द नहीं ! 

भूली तुम्हे , याद बिसार दुखी थी 

आशीष स्नेह  पुनः पा ,धन्य हुई 

बुद्धि संग खूब खेले उलझते  गये  

समझे न रंच,"बृहत" मर्म का अर्थ 

प्रेम से तुमने " किया-कहा-दिया "

वानर सदृश , धज्जियाँ उड़ा डाली   

अर्ध समझ 
तर्क से शास्त्र बन गए  
सच मान गर्वित इतरा गए थे हम 

विदुःविद्योत्तमा समक्ष पंडितों ने 

तर्क से मूर्ख को ज्ञानी  बना दिया   

रामभेंट तोड़ी भक्त ने नामदर्श को 

उन हनुमान पे बिनभाव छंदबनाये   

प्रतीक को प्रतीक न रख चरित्र बना 
डूबे  कंठ तक नकली ख़ुशी  के लिए 

मानुष  मूर्खता का क्या करें बखान 

खुदी की मूर्खता , खुद ही इतरा रहे  

भ्रम था , भ्रम को भ्रम  मारता कैसे 
पुनःपुनः स्वजन्म हो होता ही गया  

तुम्हारे  ही चरित्रों को कर  तार तार 

सुविधानुसार बुद्धिनुसार जीते गए  

तरंग गाथा सुनी तेरी , तत्विक बन 
तेरेमेरेबीच तरंग बन बारबार कौंधा  

तुझसे ही सीख अलग  विषय बनाये 

तुझीपे अमृतभासितविष छींट दिया 

वाह बुद्धि छलना द्वित्व में जीती है 

ये तन ज्यूँ एक,वो तन ब्रह्माण्ड एक 

हम  अंतर्मन का युद्ध करे तो योगी ,

वे स्वतन ब्रह्माण्ड में युद्ध करे तो...! 

हम अंदर रक्तबीज मारे योगी कहते   

वे स्वतन के जरासंध  को मारे तो......! 

पीड़ा हमारे जख्मी अंग भी तो देते  है

हमसबमें देवता-दानव दोनों पलते है 

उपाय हमको भी सहज करने पड़ते है 

अंग में जहर  फैले  तो काटने पड़ते है 

ब्रह्माण्ड-तन प्रियतम का रूपमोहक
त्रिदेव तीन समाये""शक्तिशाली वो 


प्रिय पुरुष, तरंग किरण आज छूती है 
नसों में लहूबन बिजली सी कौंधती है