Monday, 6 October 2014

अंश ( tukde)



 

1-

अनुभव क्यूँ नहीं ! ध्यान अभ्यास क्यों है ! 

गहन अनुभूति अभ्यास का आभास होती है 

"अनुभव" का रुतबा और शान जरा हट के है 

"अभ्यास" डूबने की कला का आभास देता है 

"अनुभव"  सीधा  समंदर में डूब के मिलता है


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2-


अहंकार तुम झूमते ध्यान ज्ञान कला में विषय विज्ञानं में !
सन्यास में मकान में दुकान में तुमको ही गाते नाचते देखा !!

पंडित के मंत्रगायन में मुल्ला की सुरायियों में मुस्कराते हो !
सफलताओं को छूते जिस्मो, रिश्तों मे कहीं भी घुस जाते हो !!

वो जो कहते रहे हमें अहंकार नहीं गर्व है , खोदा जब अंदर !
वहां छूत के विषाणु से तुम ही छुपे चुपके बैठे नजर आते हो !!

06/10/2014

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3- 


Be witness,

"बदलता हुआ सच तुम्हारा भी है हमारा भी है
कल था वोआज नहीं जो आज है वो कल नहीं

रोज सच के रंग बदलते चेहरे भागते चले जाते
ये वो सच नहीं जो अडिग कभी हिलता ही नहीं "


06/10/2014
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4-

"सब किताबी ज्ञान, स्वप्न है,सही नहीं !

जो सही है उसके लिए कोई शब्द नहीं है "

24 / 09 /2014
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5-

चूक जाते है जिंदगी तुझ-से बस दो कदम के फैसले पे 

जी ले जी भरके तुझे तो भी,न अगर न जी पाये तो भी

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6-

घबरा के खुद से दर्पण को यूँ पलट के न रखिये ,

उल्टा ही सही, सच्चाई का अक्स दिखता तो है !!

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7-

इत्ती माया तो माया ने भी नहीं फैलाई , जितनी हमने दी है फैला

उसने तो दूध का दही जमाया  हमने मथ रायता बना फैला डाला

23 / 09 /2014
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8-

बिखरा हुआ है अक्स मेरा अभी टूटा नहीं हूँ मैं 

"टूट के" टूट जाऊ एकबार तो टूटना तो बंद हो ...

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9-

अब तो ये ख्याल है की कुछ ख्याल नहीं 

बेख्याली केआलम से हम बेख़याल नहीं

10 /09 / 2014

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10-

अभी  ही  तो
आंधियों  से   बचायी  थी  घर  की  छत  !

लीजिये  फिर  से
छप्पर  उड़ने  का  मौसम  आ  गया  !

04 / 09 / 2014


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