Friday, 31 October 2014

एकैक सर्वत्र




सँग भाव का
घर्षित   कंठ
उभरते शब्द
शब्दों के सँग
उभरते  भाव
एकैक  सर्वत्र  

ऊर्जावानजग
उर्वरक_योग
तड़ित घर्षण
जलद व्योम
घर्षण   योग
ज्वालाबहती
वाष्पितमंडल
सर्द हिमवान
एकैक  सर्वत्र

ऊर्जा   स्नान
कभी बिजली
कभी  तूफान
कभी   बयार
गर्जन  प्रचंड
तड़ित  तड़क
अग्नि अणुतं
सुलगते  वन
पुनः  जन्मते
जीवन संयोग
एकैक  सर्वत्र

कोयल  गान
सुवसित तान
खिलते  पुष्प
खग  कलरव
रुनझुनपायल
आँगन मध्य
दौड़ता बाल्य
ओज संयुक्त
एकैक  सर्वत्र  

वाणी सुन्दर
कंठपवन का
घर्षण सुन्दर
चकमकसुंदर
समस्त ऊर्जा
अंकन  सर्वत्र
लघुतम सत्ता
दीर्घतमयोग
एकैक  सर्वत्र  

पनी यात्रा
में रहते तुम
जीवन  पूरा
जीते   जाते
क्षण  विचार
शवपरिणाम
दो  शवास्थि
ले पूरा करते
अंत_संस्कार
शेषतत्वभूति
मिलती  पुनः
तत्वजगतमें
एकैक  सर्वत्र  

ऊर्जासंयुक्त
मिले -बिखरे
कहाँ  -  कहाँ
ऊर्जा -- कहाँ
तत्व -- कहाँ
कोई - दफ़न
जला - कोई
तो बहां कोई 
कोई पर्वत में
कोई  नदी में
तो समंदर में
स्वयं विचारो 
ऐसा  ही  मूल
एकैक  सर्वत्र  

No comments:

Post a Comment