Friday, 10 October 2014

अजब सराय - गजब तमाशा


 this " Dream is true " of yesterday night
  sense knocking  even after hrs of woke-up   
enjoy reading  !


निद्रा-गहन थी, बीती रात  स्वप्न देखा 
स्वप्न क्या था  वो सराय का विहार था
छोटेबड़े खंडो में विभाजित था आशियाँ  

सब दीखते तो किसी न किसी के साथ
पर सब अकेले किस भागदौड़ में डूबे थे !
कोई लेटा, कोई सोया,पका-खा रहा कोई

कोई नहा के तौलिये से सर रगड़ रहा था 
दिनखर्च  का हिसाबकिताब हो रहा कहीं 
तो कहीं शाम के जश्न की तैयारियां थी

स्त्रीया अलग तरीके से सज्जा में व्यस्त 
पुरुष अलग तरीके से व्यवस्था में लिप्त
जीरो से  सौ वर्ष की आयु का जमघट था 

अजब सराय  न मालूम हम क्यों थे वहां ?
खड़े थे चुपचाप  किसी ने ला कुर्सी रख दी
अनमने बैठ टुकटुक  देखते सब बिनवजह 

कहीं खटपट कुछ बहस भी सुनाई देती थी 
फिर वो बियाबान सी शांति; पता नहीं क्यों
कुछ भाव न था मन में दुःख न ही सुख का

शक्ति-देवी का चेहरा दिखा पोस्टर में जड़ा 
दीवाल से लगा फूलों के साथ दीप जल रहा
ये  कैसा  नजारा  था ! ये  कैसा  स्वप्न था !

स्वप्न में विचार स्वप्न का भाव ज्ञान का 
यदयपि इस ज्ञात स्वप्न का भाव सच था
फिर भी ज्ञात है स्वप्न था मात्र स्वप्न था 

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