एक अनपढ़ मिस्त्री ने कहा :-
नीवं की खुदाई देखो ठीक से हो !
हर पक्की ईंट सिधाई से लगी हो
ईंटों के बीच का मसाला, सही हो
भवन का बोझ उसी पे है टिका
तीन स्तर पे ध्यान देना सही से
*नीवं *दीवालें औ *छत जब पड़े
चौखटा शीशम का जरा मजबूत
दरवाजों खिड़की उच्स्तर की हो ,
कुंडे कब्जे में देखना जंग न लगे
वातायन प्रवेश द्वार लचीले हो
सही मौसम पे खुल-बंद हो सके
सजाना दीवारों को रंगीन रंगों
सुविधायुक्त सुन्दर उपस्करों से
बागवानी में मनपसंद पुष्पखिले
रहना उसमे परिवार बना प्रेम से
नीवं दीवाल छत योग स्मरण रहे
छत पे चढ़ने का इतना अर्थ रहा
कोशिशतरकीब की ईंटें अब छोड़
आस्मां पे पाखी उड़ने को तैयार
जुलाहे ने कहा :-
कपास का वस्त्र जो तुमने पहना
अनवरत परिश्रम से ये बुना गया
उगाया उचित भूमि पे इस पौधे को
उचित खाद जल और मौसम संग
उचित समय पे ये पौधा वृक्ष बना
वृक्ष बन इसने फल-कपास दिया
वहां से इसे जतन से इकठा किया
सूत-कात लूम-चढ़ तानाबाना बना
एकएक धागे के रंग से कृति उभरी
सही काटकटाव से ज्ञान वस्त्र बना
मौनी!सुन समाज का हरवर्ग कहता
कर्मकर्ता! मोची, मालन,पनिहारिन
मौन स्वकर्मपथ पे वो चलता रहता
हरसु एक शब्द की टंकार वो ॐकार
ज्ञानी ने कहा :-
योग करो अन्तस्तम शुद्ध करो
प्राणायाम से स्व ऊर्जा संचार करो
ध्यान से भाव ज्ञान का दीप जले
नक्षत्रो ऊपर केंद्र में स्थति केंद्र-
से जा मिलना उच्छ्तम् अवस्था
आखिरी छलांग अंतिम उपलब्धि
मन्त्र जान, शास्त्र जान, सुन-सुना
मृत्यु जान हो जन्ममोक्षअधिकारी
हरसु एक शब्द की टंकार वो ॐकार
बालक ने कहा :-
खेल खेलता बिना थके दिन रात
खाना और माँ के आँचल में सोना
हँसता खिलखिलाता मैं मित्र सँग
कल क्या है क्या था ? नहीं जानता
आज में जीता,जाते इस पलपल को
दोस्त फूल पक्षी हवा रिमझिम जल
तितली संग डोलता रहता दिन रैन
आमंत्रित तुम भी खेलो, आओ संग!
हरसु एक शब्द की टंकार वो ॐ कार
साक्षी ने कहा :-
इतना सबसुन जान के,मुझे सुनाई दी
हरसु एक शब्द की टंकार, वो ॐ कार
भवन की छत पे खड़ा, साक्षी उड़ने को
जुलाहे का बुना ये रंगहीन , वस्त्र ओढूँ
छोटे से बालक संगमिल मैं, खेल खेलूं
सिद्ध गुरुज्ञानी के ज्ञान झूले में झूलूँ
जाऊं किसी बूढ़े वृक्ष के पास करूँ वार्ता
हर सु एक शब्द की टंकार वो ॐ कार
ॐ कार :-
सरलतमशुद्धतम सर्वज्ञान आधार
ज्ञानियों में अज्ञान बन खिलता
अज्ञानियों में ज्ञान बन जल उठता
कर्मठ के कर्म में छुप छिप रहता
योगी के योग में कठिनतम बनता
भक्त के ह्रदय भाव बन छुप रहता
बीजगृह में केंद्रित हीरे सा चमकता
फूलों की खुशबु सौंदर्य जड़ों में वो
बालक के रुदन मुस्कान में मिलता
पक्षी के डैनों ताकत बन के बासता
सागर में जल लहरों में शक्ति ऊर्जा
हवाओं में मलयपवन, बवंडर भी वो
जीवन में मृत्यु , मृत्यु में महामृत्यु
जन्म में चेतना निष्प्राण में अचेतन
असीम शक्तियुक्त,निर्बलता भी वो
असीम सौंदर्य, असीम कुरूप वो ही
जैसे भी देखो, जानो, मानो, समझो
हर तत्व की उठती गिरती तरंग में
हरसु एक शब्द की टंकार वो ॐ कार
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