अग्नि प्रज्ज्वलित धूं-धूं उन्नत लपटें
इर्द गिर्द आग के होता तत्वों का नर्तन
अग्निहोम में सब स्वाहा बचा न कोई
तात्विक-नर्तन आहुतियां हैँ तत्व की
उत्सव शोक दोनों अग्नि समक्ष घटते
जीवनदायनी ही महाविनाशकारी होती
जिंदगी स्वयं ऊर्जा का प्रकाशस्वरुप है
जिंदगी का होम , इन्द्रियां डालें आहुति
चन्दन की आहुति से महकता ये उपवन
विषैली आहुति से हो दूषित तरंगित वन
दुर्गन्ध फैलती तो कभी चन्दन महकता
मानवदेह में वासित जीव स्वयं अग्नि है
अपवित्र-आहुति युक्त धुंआ सघन हुआ
आहुति पवित्र प्रज्वलित धूम्र रहित बने
भस्म होती आहुतियाँ महकती चहुंओर
गुण-महत्वपूर्ण-आहुति के,मन सावधान
आनंदम-आभार-दया-प्रेम-करुणा स्वाहा
दिव्य-अनुभूति समर्पण स्वीकृति स्वाहा
कर्त्तव्य स्वाहा ऊर्ध्वगमन चैतन्य स्वाहा
उत्सव- मंगल - नैसर्गिकता-ओम-स्वाहा
समस्त आहुतियां सुगंध से महका दे वन
नीलकंठ बन अमृतपूर्णाहुति ओम स्वाहा !
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