विस्फुटित प्रस्फुटित बारम्बार हुई
पर संयुक्त रही तेरी नाभि केंद्र से
प्रस्फुटन और प्रस्फुटन आकाश में
लाखो करोड़ों बंटते बिखरते जुड़ते
घूमते स्वयं में घूमते तेरे चारो और
प्रस्फुटन जारी चक्कर काटना भी
इस टूटने बिखरने का क्रम जारी है
प्रस्फुटित सूर्य से टूटे नवग्रह धरती
धरा!इसमें आंतरिक बिखराव जारी
चर अचर सब है पंचतत्व के मेल
पृथिवी के अंदर बिखरे मरते मारते
बिखरते बिखरते सब यूँ बिखरते
धरती हजार टुकड़ों में बंटती गयी
देश बिखरे शहर गावं कसबे बिखरे
बेहिसाब गलियां शहरों में बिखरी
उतनी अंतर्मन में राहें बनी बिखरी
जितना कचरा बाहर उतना अंदर
ये सिलसिला यहीं पे थमता नहीं
जो प्रस्फुटन परम से अभी जारी है
थमा सिलसिला प्रस्फुटन का जब
उस दिन ब्रह्मा की नींद टूटी जान
उसदिन सिमटना होगा विस्तार का
सब ऊर्जा चलेंगी अन्तस्तम कीओर
कितने टुकड़ो में बंट बिखर जाये
केन्द्र नाभि से जुड़ा हर छितरा बिंदु
जिस क्रम से बिखरा टुकड़ों में फैला
वैसे क्रम से उल्टा समय चक्र घूमेगा
जल थल आकाश एकसाथ बोल उठेंगे
धरा का मध्य खिंचेगा सब अपनी ओर
धरा सम्पूर्णता से स्व केंद्र को उन्मुख
बढ़ चलेगी मिलने अपने प्रियतम को
सूर्य समेत नक्षत्र अपने केंद्र को ओर
समस्त केंद्र बढ़ेगा अपने प्रियतम को
बड़ासंकुचन हुई उल्कापिंडों में हलचल
लो आकाशगंगायें चली स्वप्रियत्म को
अब मानव नहीं धरती नहीं सूरज नहीं
सभी मिल खिंच रहे परम केंद्र की ओर
विश्वऊर्जा का प्रस्फुटन और संकुचन
अभी किस आंतरिक संकुचन की बात ?
बाकी सब माया इससे अलग कुछ नहीं
न ज्ञान न विज्ञानं,संकुचन न प्रस्फुटन
नियम एक दो पहलु का एक ही सिक्का
कार्य ज्ञान का और कारण विज्ञानं का
( कार्य - उत्पत्ति / कारन - प्रमाण )
जुड़ा परमकेंद्र ब्रह्म कमल नाभि से तू
प्रलय की प्रथम सुचना का होगा साक्षी
प्रस्फुटन जीवन संकुचन निद्रा का संकेत
योग और भोग जागृत अवस्था के दो छोर
परमसंकुचन पूर्व मात्र अभ्यास तुम्हारा
नहीं दे सकते निर्वाण इस भाव को नाम
क्यूंकि निर्वाण अवस्था पूर्ण संकुचन की
पूर्वइसके आवागमन क्रिया सनातनजारी
तुम स्वयं आवागमन का अंतराल चुनते
अपने भोगकर्म सुषुप्त-अतृप्तताअनुसार
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Ps : ऊर्जा का बाह्य प्रस्फुटन चाहे वो मानव शरीर में हो या ब्रह्माण्ड में नियम एक ही है ज्ञान और विज्ञानं का , परमात्मा अपना नियम एक ही रखते है , चाहे कोई विषय हो , यदि प्रकटीकरण है प्रस्फुटन है तो जीवन पालक भी है और विध्वंसक भी , सृजन है तो विनाश भी है। संकुचन की स्थति ब्रह्मा के विश्राम की स्थति है , वो ही संकुचन समग्रता से सब जगह सभी में दिखेगा , इंसान के अंतर्मन में भी वो ही संकुचन दिखेगा , ब्रह्माण्ड में भी वो ही दिखेगा । उससे पहले ब्रह्मा त्रिदेव सहित कार्य पे है प्रस्फुटन है , सृजन है , जीवन है , पालन सहित विनाश है।और मानव के समस्त आध्यात्मिक प्रयास चाहे वो कितने गहन और वास्तविक से दीखते हो समस्त मायाकाल में ही है , जिस मोक्ष की कल्पना सामान्य व्यक्ति के लिए धर्म की आधारशिला रखी गयी है वो मात्र प्रयास और अभ्यास के अंतर्गत ही है , फिर वो कोई भी योग हो। सृष्टिकाल अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है , ब्रह्मा दिन और रात , युग के बदलाव , प्रलय और पुनः जीवन का सृजन , अनवरत है। शायद इसीलिए कालातीत है , गुणप्रधान जीव जगत का आवागमन होता ही रहेगा ! मुख्य केंद्र के अभी तक इस छोर से उस छोर तक यानी की आर पार मन भी नहीं जा सका ! अभी तो उस केंद्र को मात्र छू पाने प्रक्रिया जारी है , और कुछ ज्ञानी मूर्ख इसी को मोक्ष मानते है
प्रणाम
ॐ
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