ऊर्जा की तरंगो को छूना जाना नहीं
शब्दों से आगे बढ़ना सीखा ही नहीं
बहुत कोशिश से शब्द-नाव बना ली
विचार पतवार से उड़ा दिया मन को
वहां भी शब्दों साथ कहाँ छोड़ा देखो
विचार भी शब्द प्रधान ही बन गए
अभी अभ्यास अधूरा,ये मंजिल नहीं
शब्द -विचार बड़ चलें अविचार ओर
शब्द ही क्यूँ ! कणकण में शक्ति है
तत्व और शक्ति अलावा है भी क्या
तत्व - शक्ति साथ है तो जीवन है
विभाजित हुए तो वो मृत्युक्षण जान
शब्दों से पार ये शब्दातीत जगत है
भावों से उस पार भावातीत लोक है
समय से परे वो समयतीत जगत है
तत्वों से ऊपर उठ परंऊर्जा का वास
ले ऊर्जा का साथ छोड़ तत्व का हाथ
बढ़ता जा परम ऊर्जा स्रोत की ओर
उसी ऊर्जा से ऊर्जान्वित विश्वमय
सूक्ष्मविस्तृत समस्त जगत ये सारा
रहस्यी गर्भप्रदेश में है तरंगितकाल
नेति नेति धार संग कटते चलें जाल
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