इस बीज से उस बीज को जाता हर कदम
स्व-बीजरूप गुणात्मक यात्रा से अनजान
प्रथम बीज से जन्मित रेंगते ज्ञानविहीन
अनुभव समस्त साथ ले ज्ञान राह पे चले
हर कदम रेंगता चलता, स्व-गंतव्य ओर
यद्यपि लगता अपनी यात्रा अपनी मर्जी
कोकून में बैठ द्वितीय जन्म निखरेगा
नूतन आकृति संग रंग और सुर्खरू होंगे
बीज में रहते हुए भी, बाह्य को थे उन्मुख
पुनःबीज प्रवेश प्रारब्ध था क्या ज्ञात तुझे
पुनर समय द्वित्य बीज में प्रवेश लेने का
इस गर्भ से निकले तो चिदाकाश मिलेगा
जीव ! लम्बी यात्रा का नहीं अंत,ये पड़ाव है
सुस्ताना फिर चल पड़ना, मद्धम गति से
अनंत काफिला देख स्वउत्थान गर्वित न हो
यहाँ भी मध्य खड़ा तू आगे भी भीड अपार है
अभिनन्दन मग्न शून्याकाश भी पड़ाव ही है
न सोच!राह ही मंजिल तेरी मंजिल ही राह है
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