उलझना न रुकना न अशक्त बहना
इसकी आज्ञां मान जरा नहीं चलना
इसकी मर्जी शोर करे या दे सन्नाटा
जो जिसके पास वो ही तो दे पायेगा
समय छलनदी संग मिल घुल बहता
रंग-चित्र मनपटल पे चिन्हित करता
वो उलझायेगा उलझना न बिखरना
भर्मायेगा सुख - दुःख धार बहायेगा
किनारे भिगोने के अथक प्रयासरत
चंचल लहरे पुनः लौट किनारे आती
ऊँची लहरें कभी मन-पाखी को डराती
फिर स्निग्धशांत बन चरण धो जाती
चतुर रेत भीगी कभी मायावी जल से ?
रहती ऊर्जावान संयुक्त होअस्तित्व से
पूर्ण स्वीकृत विभिन्न लहरों का जल
किन्तु ठहर न पाता रंच मात्र भी संग
रेत समर्पित क्या जल को या वायु को
या व्योम को सब उसी के अंदर बसते
याके समर्पित स्वनिर्मित भगवान को ?
कोई शैतान ! या किसी से भयभीत है ?
मौनस्वीकृति मौनसमर्पण मात्रउसको
कणकण श्रद्धासमर्पित परम-केंद्र को
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