Wednesday, 22 October 2014

पल - कल



ल कल करती बहती नदिया धार 
जल प्रवाह हर पल में होता  नवीन 

बेकल मूरख कल-पे कल-पे कहता 
पलपल जीना ना अभी सीख पाया 

लपल कलकल कर दौड़ता जाता 
बीता फुस्स अगला नजर न आता 

जीले इस पल में इसी  सांस को पूरा 
पल की साँस  कहती पूर्ण कल-कथा 

कभी पल में ही तोला माशा हो जाता 
कभी  राजा-रंक रंक-राजा बन जाता 

कभी किसी को ये पल साँसे दे जाता 
कभी यही पल श्वांस-माला तोड़देता 

ल पल में जीवन यात्रा पूर्ण है होती  
पलसंकल्प में बड़ी घटना घट जाती 

ज्ञान  के संज्ञान का टुकड़ा यही  पल 
मूर्खताओं की गाथा भी गाता ये पल 

पल कलकल सा कलकल में बहजाता  
व्याकुल हो अपने चिन्ह बनता जाता 

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