प्रार्थना मेरी तुझ अपार से
मेरी ग्राह्यता यूँ अवसर दे मुझे
मेरी ग्राह्यता यूँ अवसर दे मुझे
सिमटे अनगिनत टुकड़ो में
तारामंडल टिमटिमाते अपरिचित
तारामंडल टिमटिमाते अपरिचित
खंड-खंड में सिमित अज्ञेय
रचे गढ़े देवी-देवता हजारों लाखों
रचे गढ़े देवी-देवता हजारों लाखों
सभी हुए निजी , बंधे, संकीर्ण
शरीरो में ऊर्जाएं नहीं बंधा करती
शरीरो में ऊर्जाएं नहीं बंधा करती
सभी रिश्ते समाहित इसमें
कर्त्तव्य प्रेम से सराबोर मनजधर्म
कर्त्तव्य प्रेम से सराबोर मनजधर्म
रिश्ते स्वयं ही जी उठेंगे
मनुष्यता को मात्र पूर्णरूप जीने से
ऊर्जा का ॐ स्रोत वो वहां
धरती पे मनुषधर्म ॐ की है पुकार
धरती पे मनुषधर्म ॐ की है पुकार
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