Monday 27 October 2014

ॐ की पुकार



प्रार्थना मेरी तुझ अपार से

मेरी ग्राह्यता यूँ अवसर दे मुझे


सिमटे अनगिनत टुकड़ो में

तारामंडल टिमटिमाते अपरिचित


खंड-खंड में सिमित अज्ञेय

रचे गढ़े देवी-देवता हजारों लाखों


सभी हुए निजी , बंधे, संकीर्ण

शरीरो में ऊर्जाएं नहीं बंधा करती


सभी रिश्ते समाहित इसमें

कर्त्तव्य प्रेम से सराबोर मनजधर्म



रिश्ते स्वयं ही जी उठेंगे

मनुष्यता को मात्र पूर्णरूप जीने से


ऊर्जा का ॐ स्रोत वो वहां

धरती पे मनुषधर्म की है पुकार

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