Sunday, 11 January 2015

" पिज्जा " सी जिंदगी





पिज्जा  या के रोटी सी  तु
जिंदगी "तुझे" जी  लूँ कैसे 
गोल  तश्तरी में सजे दोनों
पिज्जा  तो सुन्दर कटा था
रोटी थी पूरी गोल फूली सी
भूख लगी बहुत क्या करते

पिज्जा  स्टाइल अलग था
सुंदर  सजा टुकड़ों में कटा
मौज से खाना था स्वाद ले
कहाँ था  संयम स्वाद लेते
छोटे छोटे  टुकड़े बना रोटी
दूध में डाल सटकी, सट से

फिर  देखा सामने बैठा वो
पिज्जा खा रहा था प्रेम से
एक एक टुकड़ा स्वाद लेके
औ मैं गटक गया चूरे बना
पूरी पूरी रोटी दूध के साथ
एक  बार में गल्प हो गयी
अच्छी  थी  या थी वो बुरी
पता न चला औ चुक गयी

सुना  किसी  ज्ञानी ने कहा
थी " पिज्जा "  सी  जिंदगी
"रोटी-दूध" सी  सड़क  गए
स्वाद  क्या अनुभव कहोगे
मिली गोल सजी तश्तरी में
प्रारब्ध  की टॉपिंग के साथ
टुकड़ों में आती टुकड़े जियो
पिज्जा सी सजी जिंदगी को

फिर  देखो जागरूक आत्मा!
जिंदगी मिलते-बिछड़ते धारे
कणकण मिल बन रास्तों को
एकएक कण मिल जुड़ बनते
रोटी के पिज्जा से कमाल को

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