शांत, सुशिक्षित, स्वक्छ, सुरक्षित
खुद से अपने ही घर के कोने में
कोकून सा सागरबिंदु समान
पड़े रहने को यूँ जी करता है
जग कलुषित जलता वन
दृश्य आँखों से दिखता
कानो से सुनाई देता
स्पर्श अग्नि सम
चिंतन विषाक्त
ह्रदय दग्ध हो
ध्यान सुन्दर
ले जा प्रिये
तू साथ
"ॐ "
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"ॐ "
से पुनः
प्रवासी आ ...
शक्ति संचय ले
जन्मना है फिर से
आश्रम सी इसी देह में
हो स्वक्छ रक्त निर्माण
आह मर्यादित श्वांस प्रवाह
धमनियों से बहे ह्रदयथल को
संयम धैर्य संतोष फलीभूत हो
स्व तपस्या से चरित्र निर्माण हो
चंचल मनबुद्धि त्रिशूल से भेदा जाए
तपस्वी ह्रदय बोले बारम्बार " शिवोहम"
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