कोइ पत्थरों पे खोद गया अक्स उसका
तो कोई उनकी विवेचनाओं में खो गया
कोई गा गया, तो कोई गुनगुना के गया
कोई पढ़ गया, कोई लिख के चला गया
शब्दाभिव्यक्ति में, ग्रन्थ ही बना गया
कोई चित्र से कह गया तो कोई नर्तन में
कोई डूब गया उस के अगाध समंदर में
तो कोई डूब के उसमे, उस पार हो गया
सीमान्त में बांधा गया कोई दृष्टान्त में
कोई भाषांत में उलझ के ही बिखर गया
त्रिशूल डमरू बजा कोई तांडव कर गया
कोई कृष्ण- राधा संग बांसुरी बजा गया
जिसने जब जो कहा,यही के वो शाश्वत
एकात्म आलोकित पथ कोई सुझा गया
ओम की सत्ता ,शक्ति , सौंदर्य ओम का
अतिरिक्त कोई कुछ भी कह पाया क्या
Om Pranam
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