Wednesday 14 January 2015

जुगनू सा ज्ञान और जुगनू से फैले संज्ञानी



जंगल में फैले झुरमुटों से चमकता झांकता 
जुगनू सा ज्ञान और जुगनू से फैले संज्ञानी 

मोती खोजने बार बार गहराई में उतरता हूँ 
हर बार कुछ कीचड़ , कुछ कंकड़ हाथ आते

हमेशा विश्वास से वो कहता! मोती भी यहाँ 
फिर डुबकी लगाता हूँ विश्वास से गहराई में

इसबार मैंने डुबकी लगायी मेरा"मैं"नहीं रहा 
मर गया जो था तैर कर निकला"मैं"नहीं था

एक स्वर गुंजायमान था समूचे नंदनवन में 
डूबना,मर जाना,तैर निकल फिर जन्म लेना

मायाजीवन त्यागना देह पार जाना ही होगा 
अमृत वास्ते मृत्तिकादान खाली करना होगा

खुद डूब खुद मरना ,खुद तैरना खुद जन्मना 
राज्य के राजा ! आदेश दूसरे को नहीं फलेगा

वो एक नहीं था जुगनुओं से जंगल रौशन था 
चमकते उड़ते सब गाते डुबो-मरो-तैरो-जन्मो

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