Friday, 2 January 2015

माया है मूरख माया है ये




ओरी दुनिया गजब निराली 
जैसी दृष्टि ! बने वैसी सृष्टि 
खेल तमाशा या शोर शराबा 

नित  नवीन  उत्सव   उमंग 
प्रेमपाश  मोहपाश  रूपपाश 
स्वदेस राह  भूल  मन  डूबा  

नाच, नगाड़ा, टप्पा, भांगड़ा 
इधर धमाका  उधर पटाखा 
कहीं फुलझड़ी जली रे जली  

कहीं कागज नहाये  रंगों  से 
कही सुर  तो कहीं गीत बने 
कहीं ताल, कही नृत्य उभरे 

सुर्ख इंद्रधनुषी सात रंग का 
कहीं बिखरा , कहीं  बिखेरा 
मोहिनी नहाती सब रंगो से 

बारी बारी रूप लुभाती जाती 
सुगंध -पुष्प के  जेवर  पहने 
अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी है 

जीव न समझ सम्मोहन है 
बुद्धिहारिणी, मोह्पाशिनी 
माया  है  मूरख  माया है ये !

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