बीजरूप जलकण अभिनंदन
कण-कण स्पंदन अभिनंदन
नन्हा जलकण विस्तृत होता
बूँद से भाप बन सघन बादल
सांवल श्याम नीरद कहलाया
छा गया आसमान पे घनघोर
बरस बंजर को हरित बनाया
समा धरती की शिरा में दौडा
वसुधा पे प्राण नदी कहलाया
तो नसों में बह रहा रक्त बन
विस्तार से संकुचन को बढ़ता
शिरा से बह गिरा पुनः धरा पे
बूँद से वह जलकण आज पुनः
भू पे गिर; बीजरूप होने आया
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