एक अजब मंजर है सफर का
फिसलते से हम बढ़ते ही गए
राहगीरों की बेशुमार भीड़ में
गिरे तो कुछ संभलते भी गए
परदे पे रुलाते थे वो जी भरके
पर्दे पीछे शुक्राना वो हँसते रहे
हँसाते तमाम उम्र माबदौलत
परदे पीछे वो अश्क बहाते रहे
जिंदगी ऐसे भी जिंदगी देती है
जिस्म से रूह भी छीन लेती है
जो है बहुत है शुक्रिया उसका
लेती है तो कीमत बता देती है
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