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धागे के सिरे की बात करने पे
वे चादर को तार तार करते है ,
क्या खूब इंसानो की बस्ती है!
वे नासमझी समझ के करते है
धर्मी ठेकेदार नहीं यहाँ रहता
जो गुरु चेलों की बात करते है
शौक नहीं आसमां झुकाने का
खुद से अपनी ही बात करते है
चाँद-तारें-सूरज यार बन बैठे
कायनात खुद में समेटे बैठे है
उसके साथ है याराना हमारा !
संतसुर गंगा में स्नान करते है
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