Thursday 29 January 2015

संतसुर गंगा



धागे के सिरे की बात करने पे
वे चादर को तार तार करते है ,
क्या खूब इंसानो की बस्ती है!
वे नासमझी समझ के करते है

धर्मी  ठेकेदार नहीं यहाँ रहता
जो गुरु चेलों की बात करते है
शौक नहीं आसमां झुकाने का
खुद से अपनी ही बात करते है

चाँद-तारें-सूरज  यार बन बैठे
कायनात खुद में समेटे बैठे है
उसके साथ है याराना हमारा !
संतसुर गंगा में स्नान करते है

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