Tuesday, 6 January 2015

अंजान राह के अंजान सफर पे

 सफर 


तेजी से दौड़ते भागते वक्त ने 

जरा थम के...गहरी सांस भरी 

हरबार हरमोड़ पे खुद से मिले


पहले अनजान थे पहचान हुई 

फिर घनिष्ठता घटी और फिर 

अंजान बन गए ज्यूँ मिले नहीं


कुछ सोच एक औरगहरी सांस 

इस बार साथ.. साथ..चल पड़े

अंजान राह के अंजान सफर पे

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