Wednesday 14 January 2015

प्रिय मनु



आकांक्षा तुम्हें  दिव्य जगत में सशरीर जाने की
गहराइयों को रॉकेट के साथ छू वापिस आने की

त्रिशंकु सदृश तपस्वी की तपस्या पे लटकने की
आत्मा के  सुनसान संसार को सदेह जानने  की

कभी अथाह सन्ताप की जरुरत देह त्यागने की
जिज्ञासा कभी योग माया से  माया को पाने की

सुना तो होगा  तुमने ! नहीं कुछ व्यर्थ जगत में
जी लो जान पूरा जो मिला मान उपकार उसका

हर गुण उपहार हर धर्म कर्त्तव्य हर भाव श्रद्धेय
प्रकृति प्रदत्त अंग हर इन्द्रिय का उपकार असीम

बैठो तनिक धीर,विचारो जो मिला उसेतो जी लो
मनुष्य आखिर हो क्या  ? चाहते क्या हो खुद से

इतना जानो समस्त भाव क्यूँ, मिला जन्म क्यूँ 
इन्द्रियां मिली क्यूँ शरीर के अंग व्यर्थ नहीं क्यूँ 

प्रिय मनु , स्थिर हो  मनु होने का भाव तो  लेलो
मनुष्य का धर्म तो समझो  जन्म का अर्थ जानो  

भरोसा स्वयं पे रखना जीवन पूर्णता से जीते ही 
जागरूक  साक्षी को मिल जायेगी वांछित उड़ान 

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