ओम ऊर्जा - पुंज आभासित
गहरे निशान पड़ते
दीखते थे दूर तलक
भारयुक्त आभास था
अपना अब हवा सी हूँ
ये कहाँ पड़ते कदम
कौन रास्ते अनजान
पीछे निशान भी नहीं
छुट्ते जहाँ कदमो के
फिर भी चलती तो हूँ
अनवरत बिना थके
रौशनी पुंज का पीछा
सम्मोहित करती हूँ
सीप ढालती नव मोती
धरती पे सूर्यकिरण मैं
आभासित ॐऊर्जापुंज
के पीछे भागती तो हूँ
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