आज़ादी का जश्न मनाओ, गर्व से
साथ में ये भी सोचो जरा !
साथ में ये भी सोचो जरा !
(१५ अगस्त २०१४ )
जब से होश संभाला, लोगों की बेहोशी देख के
वो ही घाव खुल गए, लहू बहता है , दर्द होता है
मरने वालो के ऊपर कैसे जश्न मानते हो गर्व से
क्यूंकि हमारी आज़ादी के निमित्त ,क़त्ल हो गए
अभी ! जश्न किस बात का !
एक को उन्मत्त किया दूजे को शहीद दिवस दिया
ये कैसा शातिर चौपड़ , खेल दिमागी शतरंज का
जो यहाँ के वहां क़त्ल हुए शहीद का झंडा डाला
वहां के यहाँ क़त्ल हुए वहां शहीद का झंडा डाला
यहाँ ! जश्न किस बात का !
कुछ वे लोग, क्या जज़बा था ,क्या सैलाब था
जिसमे बह गए जवान खून ,रुसवा बेवाये हुई
अकारण यतीम हो गयी संताने उनकी , सोचो !
या वो आज़ादी दे गए, अगली गुलामी के लिए
अभी ! जश्न किस बात का !
ख़याल है क्या ! कसाई-हाथ लगे ईद के बकरे का
खौलते गर्म खून गरजती गोलियों तले बह गए
मुल्कगत राजनीती ने मासूमो को गल्प लिया
यह कौन सा राग गा रहे पुष्पमालाये चढ़ा रहे हो
यहाँ ! जश्न किस बात का ?
उस वख्त जूनून सवार था, आज भी वो ही हाल है
सीमा में कतार से लगे वो फिर काटने को तैयार
मनुष्य तब भी वोही था , मनुष्य आज भी वोही है
मस्तिष्क पुकार पे निकल पड़ते उन्मत्त मतवाले
अभी ! जश्न किस बात का ?
जीनामरना किसने सोचा अजबगजब उन्माद तले
इसी प्रमाद के कदमो तले शहीद इंसान आज भी है
कभी देश , कभी धर्म, कभी वोट या कौम के लिए
कारन कोई लगा दो मरते दोनों तरफ इंसान ही है
यहाँ ! जश्न किस बात का ?
इंसान ने इंसान को मारा ? बेवाये आंसू लिए खड़ी
जो जी सकते थे जीवन ,जूनून ने उनको मार दिया
क्यूँकर नौबत आई ? विचारो इस पर मंत्रणा करो
फिर जश्न भी मना लेना , गर हल कुछ मिल जाये
अभी ! जश्न किस बात का ?
राज-नेता धर्म-नेता जूनून से काटते कटवाते रहेंगे
तुम कब सोचोगे भीड़ के मदोन्मादी परिणामो को
जो सोच सकते है तनिक दिमागी खेलो चालो को
वो खुश हो नहीं सकते जलत्रासी नीति भरे नारों से
यहाँ ! जश्न किस बात का ?
यूँ तो जश्न के लिए एक पल का होना ही बहुत है
साँसों का चलना, होंठ_आँखों का हंसना बहुत है
जश्न तो धरती पे जन्म लेने का जीने का नाम है
जश्न तो उन मिली बेमोल नियामतों का नाम है
यहाँ ! जश्न किस बात का ?
इंसान को रहने दो इंसान की तरह जीने दो जीवन
उनको भी अधिकार है इंसानियत पे और ख़ुशी पे
भीड़ को उन्माद मत दो, धर्म को राजनीती मत दो
देश को चलाने वालो , लोगो को विचार-मुक्ति दो
अभी ! जश्न किस बात का ?
सोचो जरा ऊपर उठ के इंसानो , इंसान की तरह
धरती के गर्भ से तुम उत्पन्न हुए औ फिर तुमसे
तुमसे जीवन खिले तुम भी सृजन के भागीदार हुए
सृजन से परे संहार उत्पात के क्यो संयोजक हुए
यहाँ ! जश्न किस बात का ?
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