नशेचीन है बे-हिसाब बोलते रहेंगे
शब्द सजाते साज़ बजाते ही रहेंगे
खुद पे कभी तुम पे हँसते ही रहेंगे
बीतेगा वक्त कभी टूटके बिखरेगा
इनकी बातों में ना मुकाम बनाना
लहर मानिंद है,वे आते जाते रहेंगे
सुरूर वो मय का जो खाने में बंद है
इक ये कि पिया नहीं फिरभी चूर है
जिंदगी की बिसात पे , दांव है लगे
हारिये या के जीतिए, क्या कीजिये !
दिनरात भागने की आपा धापी क्यूँ
अपनेदिनरात है,इत्मिनान कीजिये!
अपनेही अंधेरों को रौशनी वो कहते है
अच्छीबातों के भेस में छिपेहुए बैठे है
सबको समझाया खूब बखूबी आपने
वोही समझने की अब आपकी बारी है
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