Tuesday, 19 August 2014

आप ही आप



आपने कहाँ-कहाँ कोशिश न की बताने की
ता-उम्र  मसरूफ रहे  अपने  अफ़सानों  में

नींद में सपनो में सोये जागे आँखों में आप
घरबाहर शक्लों अनुभव सबमें शामिल रहे

पर्वत-नदिया-दरिया संग  गुफ्तगू  आपसे
आँखें खोली या बंद की तोभी आपको पाया

समंदर धरती आकाशीय चमचमाते ये तारे
कहाँ जाते!आप को आपसे अलग कर पाते

कैसे नादाँ है जो कहते है खोजूं तरकीबों से
कैसे मगरूर खुद को चालाक समझने वाले

सोचा चलो थोड़ा और देखें दीदार ए नूर को
आँखे की बंद कायनात साथ आप आ गयी

यही सच हैअलावा कोई और दूजा सच नहीं
उसकेलिए  किसी तरकीब की जरुरत  नहीं

सारी तरकीबों को उतार फेंको मैल धो डालो
बुनो  बुनकर दोबारा साफ़  सुथरी चादर को

सराहो भाग्य कोअपने,प्रकृति के चुनाव को
परम की सोच को ओ इस जीवन बहाव को

कुछ नहीं करना  बस धोना है तन और मन
स्वक्छहृदयमंदिर तैयार दीपजलाने के लिए

स्त्री में, पुरुष में, बालक में, प्रेम में, भाव में
राग में, द्वेष में, क्रोध में, लोभ में, मोह में

राम कीशक्ति कृष्ण कीभक्ति सूफीकलाम
मीरा के भजन रहीम के दोहे कबीर के बाण

संज्ञा  से बाहर सर्वनाम में स्थित  यथावत
कर्मकांड नियम से बाहर भावकांड में पाया

शिवा शक्ति संयुक्त, कृष्ण और कृष्ण-प्रेम
समस्तजीवजगत में शामिल आप ही आप !




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