मानव जीवन अज्ञानतावश पीड़ा का जीवन , भोग का जीवन , मोहवश असीम मानसिक शारीरिक कष्टों का जीवन , युद्ध के पहले सघन ऊर्जा विष की और युद्धोपरान्त असहनीय विषाद गहन पीड़ा , मात्र आंसू और परिजन की लाशो के बोझ तले ,
इस भयानक विषाक्त-ऊर्जा के गुजर जाने के पश्चात मात्र बचता है लूटा पिटा मात्र मानव मन , मुझे समझ नहीं आता , ऐसे युद्ध का चुनाव करता कौन है ? किसकी विजय गाथा का इतिहास में नाम आना बाकी है ? महाभारत का महा विनाशकारी युद्ध और दुष्परिणाम किसी से छुपे नहीं , हमारे ऋषियों ने कथा रूप में शायद हमारे मूढ़ मन के लिए ही संजोया, किन्तु क्या सीखा ?
मन की शांति , और प्रेम का पाठ अभी भी पढ़ना बाकी है , अभी भी मानव मन अंदर की अधूरी यात्रा कर पाया है। अभी भी कहीं रक्त की प्यास मुह खोल रही है , राजनीती को हथियार बना , अभी भी दानवीय दुष्टता , मानवता को छल रही है , एक देश के शहीद दूसरे देश में आतंकवादी बन जाते है। ये कौन सेना का गठन कर रहा है ? मानव की सेना मानव के लिए। और ये सेना में भर्ती सैनिक क्या इंसान नहीं , क्या ये नहीं कह सकते की ये कृत्य मानवता के विरूद्ध है !
अपने ही खिलाफ हथियार तैयार कर रहा है , ये कौन है ? जिसने पहले देश सीमा बनाई , फिर सीमा सुरक्षा के लिए सेनाये , सेना भी आदेश के अधीन , मरना जीना उनके सोचने का विषय नहीं , ऐसे सैनिक और हथियार पोषित करके के तंदरुस्त बनाये जाते है , और दो देशो में मरने के लिए भेज दिया जाता , कौन है , इस खुनी साजिशों के पीछे ? साजिश तो शाही कार्यालयों में होती है पर सीमा पे मरता इंसान ही है ! मरते सिर्फ रिश्ते है ! मिलता क्या है ? दुःख पीड़ा विकास को बढे कदम दोगुने पीछे खिंच जाते है। काश ये धरती राजनीती की साजिशों से मुक्त हो सकती , काश ये धरती वास्तविक धर्म को देख सकती।
बुद्ध के सन्देश शायद ऐसे ही दानवो के ह्रदय परिवर्तन के लिए थे , शायद वो मानव चेतना को दिव्यता में बदलना चाहते थे , वो आम सामाजिक मनुष्यों के ह्रदय परिवर्तन में भी सहायक हुए जिनसे समाज में वैराग्य की लहर व्याप्त हो गयी थी ,परन्तु वास्तविकता ये है की आज भी वे धम्मपद उतने ही आवश्यक है दानवों के ह्रदय परिवर्तन के लिए। आज भी कृष्ण के दिशा निर्देश की आवश्यकता है। कितना कमजोर और बेवकूफ इंसान है , एक इंसान ही दूसरे को मोहरा बना के उपयोग में ला के सोचता है , सुख से राज्य करेगा !!
आत्मन, निर्वाण की ओर
दिव्यलोकित जीवन
विज्ञानं से ज्ञान की ओर
प्रकाशमय जीवन
युद्ध से बुद्ध की ओर
शांतिमय जीवन
ज्ञान से आध्यात्म की ओर
प्रेममय जीवन
पीड़ाओं से मुक्ति की ओर
वात्सल्यमय जीवन
अश्रु चले प्रकाश की ओर
पवित्रशुद्ध मन
सोचे वास्तविकता को ओर
ध्यानमय जीवन
कैसी वेदना कैसी पीड़ा
प्रभुसमर्पित जीवन
सन्यासमय जीवन की ओर
आध्यात्मिक जीवन
स्वयं से स्व जीवन की ओर
आपो गुरु आपो भवः
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इस भयानक विषाक्त-ऊर्जा के गुजर जाने के पश्चात मात्र बचता है लूटा पिटा मात्र मानव मन , मुझे समझ नहीं आता , ऐसे युद्ध का चुनाव करता कौन है ? किसकी विजय गाथा का इतिहास में नाम आना बाकी है ? महाभारत का महा विनाशकारी युद्ध और दुष्परिणाम किसी से छुपे नहीं , हमारे ऋषियों ने कथा रूप में शायद हमारे मूढ़ मन के लिए ही संजोया, किन्तु क्या सीखा ?
मन की शांति , और प्रेम का पाठ अभी भी पढ़ना बाकी है , अभी भी मानव मन अंदर की अधूरी यात्रा कर पाया है। अभी भी कहीं रक्त की प्यास मुह खोल रही है , राजनीती को हथियार बना , अभी भी दानवीय दुष्टता , मानवता को छल रही है , एक देश के शहीद दूसरे देश में आतंकवादी बन जाते है। ये कौन सेना का गठन कर रहा है ? मानव की सेना मानव के लिए। और ये सेना में भर्ती सैनिक क्या इंसान नहीं , क्या ये नहीं कह सकते की ये कृत्य मानवता के विरूद्ध है !
अपने ही खिलाफ हथियार तैयार कर रहा है , ये कौन है ? जिसने पहले देश सीमा बनाई , फिर सीमा सुरक्षा के लिए सेनाये , सेना भी आदेश के अधीन , मरना जीना उनके सोचने का विषय नहीं , ऐसे सैनिक और हथियार पोषित करके के तंदरुस्त बनाये जाते है , और दो देशो में मरने के लिए भेज दिया जाता , कौन है , इस खुनी साजिशों के पीछे ? साजिश तो शाही कार्यालयों में होती है पर सीमा पे मरता इंसान ही है ! मरते सिर्फ रिश्ते है ! मिलता क्या है ? दुःख पीड़ा विकास को बढे कदम दोगुने पीछे खिंच जाते है। काश ये धरती राजनीती की साजिशों से मुक्त हो सकती , काश ये धरती वास्तविक धर्म को देख सकती।
बुद्ध के सन्देश शायद ऐसे ही दानवो के ह्रदय परिवर्तन के लिए थे , शायद वो मानव चेतना को दिव्यता में बदलना चाहते थे , वो आम सामाजिक मनुष्यों के ह्रदय परिवर्तन में भी सहायक हुए जिनसे समाज में वैराग्य की लहर व्याप्त हो गयी थी ,परन्तु वास्तविकता ये है की आज भी वे धम्मपद उतने ही आवश्यक है दानवों के ह्रदय परिवर्तन के लिए। आज भी कृष्ण के दिशा निर्देश की आवश्यकता है। कितना कमजोर और बेवकूफ इंसान है , एक इंसान ही दूसरे को मोहरा बना के उपयोग में ला के सोचता है , सुख से राज्य करेगा !!
निश्चित उसने आत्म मंथन नहीं किया होगा ,
निश्चित उसने आत्म यात्रा नहीं की होगी।
आत्मन, निर्वाण की ओर
दिव्यलोकित जीवन
विज्ञानं से ज्ञान की ओर
प्रकाशमय जीवन
युद्ध से बुद्ध की ओर
शांतिमय जीवन
ज्ञान से आध्यात्म की ओर
प्रेममय जीवन
पीड़ाओं से मुक्ति की ओर
वात्सल्यमय जीवन
अश्रु चले प्रकाश की ओर
पवित्रशुद्ध मन
सोचे वास्तविकता को ओर
ध्यानमय जीवन
कैसी वेदना कैसी पीड़ा
प्रभुसमर्पित जीवन
सन्यासमय जीवन की ओर
आध्यात्मिक जीवन
स्वयं से स्व जीवन की ओर
आपो गुरु आपो भवः
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बुद्धम शरमन गच्छामि
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धम्मं शरणम् गच्छामि
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संघम शरणम् गच्छामि
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