Wednesday 20 August 2014

छद्मी रहता असीमविस्तार-असीमसंकुचन में



विस्तार ने दिया सम्भावनाओ का असीम संसार 
विस्तार  से  चला  मन उडा  अनंत  के पार हुआ 
यहीपे बैठे बैठे निर्लिप्त जीव जगत के पार हुआ 

विस्तार के रथ पे बैठ  मनमयूर मगन  नाच उठा
विस्तार उड़ान  आसमान से ऊँची सागर से गहरी 
विस्तार के पंख लगा  मन की शक्ति ने ली गति 

नहीं दिखती यहाँ से मुझे  कोई दीवाल  कोई बाधा 
बना जाल धुंध से दिखता थोड़ा नीचे जो आये उत्तर 
मन-मस्तिष्क की उपस्थ्ति के अर्थ यहाँ भिन्न हुए 

ऊपर ह्रदय की दुनिया में तो इनके अर्थ ही अलग है 
संकुचन में भी और विस्तार भी इन्हीसे सिद्ध हुआ 
न कोई कालिख न कोई दाग कैसा अद्भुत ये संसार 

न कोई आवरण न कोई बंटवारा तेरा मेरा घर संसार 
न प्रभु बंटाछँटा न इस धरती के टुकड़े  बनते दीखते 
निरालापवित्र मनोरम मनोहारी शांत सुमधुर जीवन 

माया  मायावी संकुचन विस्तार आवरण जैसा छाया 
जिसके तले न  कुछ दिखता समझ न कुछ भी आता 
मायावी घने कोहरा तले चम-चम झूठा सूरज दीखता 

झूठा सूरज झूठे तारे  झूठे रिश्ते झूठे प्रेमसम्बन्ध सारे 
न - न , इनके बहकावे में न आना,नहीं एक आना सच 
माया घेरे से बाहर निकल देखो सचकी दुनिया का सच 

आह ! चमकता भव्य रूप दर्शन, नहीं ऐसा कही जैसा 
यहाँ देखा कोई शब्द नहीं बने वैसे, जो कर सके वर्णनं 
समझसके नहीं वैसा,अनोखा सबसे अलग विलक्षण है 

रूप कोई न रंग, न उसकी कोई पहचान,वो सखा मेरा !
संकुचित ह्रदयबीज में रहता विस्त्रित हो आकाशगंगा 
ऐसा  नाथो का नाथ, असीम अनंत अगाध परम मित्र 

इतना जान लो मान लो, कह सके सुन सके सुना सके 
इस संसार  में तो सामर्थ्य नहीं शब्दों में उसे बांध सके 
मौन हो जाओ  मौन में डूबो , आँखे बंद कर यही पाओ 

रूप में नहीं रंग में  गंध में नहीं, मंदिर मस्जिद में नहीं 
मकान दुकान बुद्धि मायावी मन कहीं नहीं वो मिलता 
अद्भुत छद्मी रहता असीमविस्तार-असीमसंकुचन में

मिला प्रेम के जीवित कणो में मिला वो उड़ती सुगंध में 
मिला आँखों  के जलते दीयों में आनंद की गहराईयों में 
पवित्र लौ के अत्यंतकिनारे पे महीना सा बैठा मिला वो  

झरने की फुहारों समंदर की लहरो में झलक दिखायेगा 
देखना उंचाई छूती चिड़ियों की उड़ानों हिरन कुलांचों में 
कहाँ बताऊँ? थक बैठ स्थिर हो; ह्रदय-संगीत में देखना  

सखा !अंतिम-प्रथमसमस्त संज्ञासर्वनाम में वो मिलेगा !
सखा !अंतिम-प्रथमसमस्त संज्ञासर्वनाम में वो मिलेगा !
सखा !अंतिम-प्रथमसमस्त संज्ञासर्वनाम में वो मिलेगा !


Love is the Light that dissolves all walls between Souls, 
Families and Nations. ~ Paramahansa Yogananda

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