कलम उठायी
लिखूंगी कुछ
आत्मसात को
जरा ह्रदय
मंथन हो
रचना जो
लिखूंगी कुछ
आत्मसात को
जरा ह्रदय
मंथन हो
रचना जो
कुछ कह सके ,
दे सके निष्कर्ष
मनस्वी के सोच-
के लिए ; संभवतः
युद्ध पे
धर्म पे या
राजनीती पे
नीति पे
विज्ञानं पे या
मनोविज्ञान
मानवता का
जिक्र आते ही
स्याही गिरी
कोरे-कागज पे
अंतर्मन की
पीड़ाओं की
शब्द नकली
न बन सके
वो जो निकले
दिल से …
तथाकथित
ज्ञान की
प्रवंचना से
तथाकथित
ज्ञान की
प्रवंचना से
विज्ञानं की
बेतुकी छलांग
से बेचैन ही नहीं
अतृप्त भी हूँ
बेतुकी छलांग
से बेचैन ही नहीं
अतृप्त भी हूँ
भयभीत हूँ
दानवता की -
व्यग्रता से
उदास भी हूँ -
धार्मिकता की
चाल से
निराशा भी हूँ-
मानवता से …
जीवन क्षयी
औजारो समक्ष
दानवता हंसती
मानवता सहमी
और
मानवरचित
दैवगण
सदियों से
धर्मग्रन्थ में बंद
कथाओं में
कर्मलीन
संसार सुधार को
उठा कोई जब भी
धर्म शास्त्र पढती हूँ
यही पाती हूँ
इधर तेज रफ़्तार
हवाई गोला
इधर तेज रफ़्तार
हवाई गोला
बारूद का
सैकड़ों को
निगलता
चला जाता
मदमस्त
जीत को आतुर
मानव का बस
आँखों और बुद्धि पे
काली पट्टी बांध
इक_वार_आसमानी
मीलों ऊपर के धमाके
मीलों विस्तार से
धरती की छाती
मीलों ऊपर के धमाके
मीलों विस्तार से
धरती की छाती
पे गिरते, वे ;
असंख्य लौह कण
हवा में मिल के
अनजाने में
घुसते जाते
इनके आने से
बेखबर खेलते
मासूमों के जिस्मों
में विष फैलाते
और एक तरफ
जश्न मानते
हवाई बमो के
राजनैतिक मालिक
आसमान से नीचे दीखते
रेंगते कीड़ों की
राजनैतिक मालिक
आसमान से नीचे दीखते
रेंगते कीड़ों की
क्या फ़िक्र करेगा , ये
कभी समंदर में
कभी सड़क पे चलते
कभी हवा में उड़ते
हम सा ही दीखता
अद्भुत दानव-मानव !
peom may find here also ... http://allpoetry.com/poems/by/Lata
ReplyDeleteAuthor Notes :
ReplyDeletethe poem written in hindi language , sharing gist in english for non-hindi readers , its a poem with background of devil and deity both lives in human body , devils involve in distraction and deity are busy in to save damages by devils . surprising is , all are working for through human bodies , we have to watchful to trace them wisely .
well purposely designed writ in shape of snake-walk , as this poem serves this feeling too
regards