Wednesday, 27 August 2014

इश्क़




मोहब्बत  की शोहरत जरा दोनों तरफ देखिये 
सूरत  इश्क़  की  साफ  हो  जाएगी 

एक तरफ माँ का जाया वो छाती से लिपटा है 
मासूम  है जो अबोध है अनजान है 

दूजी तरफ उस माँ का आँचल कुछ भीगा सा है 
कैसा प्रेम रिसाव जो दिल को जोड़े है 

ये पल के ख़ुदा का नूर उतरा है माँ के आँचल में 
तो वो मासूम भी इश्क़ में डूबाडूबा है 

इस  इश्क़ उस  इश्क़  में फर्क इतना ही है मौजूद  
इक  बेपनाह है तो दूजा पनाह में है 

ये इश्क़ जो समझ पाया उसपे ख़ुदा मेहरबाँ हुआ 
ये वो दरिया है जो कभी उल्टा नहीं बहता 


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