मोहब्बत की शोहरत जरा दोनों तरफ देखिये
सूरत इश्क़ की साफ हो जाएगी
एक तरफ माँ का जाया वो छाती से लिपटा है
मासूम है जो अबोध है अनजान है
दूजी तरफ उस माँ का आँचल कुछ भीगा सा है
कैसा प्रेम रिसाव जो दिल को जोड़े है
ये पल के ख़ुदा का नूर उतरा है माँ के आँचल में
तो वो मासूम भी इश्क़ में डूबाडूबा है
इस इश्क़ उस इश्क़ में फर्क इतना ही है मौजूद
इक बेपनाह है तो दूजा पनाह में है
ये इश्क़ जो समझ पाया उसपे ख़ुदा मेहरबाँ हुआ
ये वो दरिया है जो कभी उल्टा नहीं बहता
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