Thursday, 28 August 2014

इश्क़ समंदर



इक इश्क़ इबादत है  इक इश्क़ जुनूँ
इक इश्क़ नजाकत कभी  वहशत है
इक  इश्क़ बेख़ौफ़ तो कभी सहमा है
अश्कों का खज़ाना  नूर की दौलत है

बयां ए इश्क तो और अनबूझ हुआ है
जज्बात के सुर मिले तो वहीँ  बंधा है 
जिस दिल में उतरा निगाहोँ में दिखा
रिश्तों में बंधा है बेबस बँध के मरा है

इश्क बरसे जहाँ रौशन वहां नज़ारा है
इश्क कहर बरपाये तो, ख़ुदा खैर करे
कभी जिंदगी देता कभी छीन लेता है
दीने-इलाही से मिला भी यही देता है

इश्क़ अपने रिवाजो से बदनाम  हुआ
अलग अलग रिश्तों रस्मों  में ढला है
किसी को  दे गया  जीवन की दौलत
कभी खौलता आग का दरिया बना है

बेमोल लूटाया तो, बेशकीमती बना है
कुछ चाहा उससे , वही बे-मौत मरा है
प्यासे इधर-उधर खोज में तड़पे भटके
जहाँ थक के बैठें, वहीँ  समंदर  बना है 



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