इक इश्क़ इबादत है इक इश्क़ जुनूँ
इक इश्क़ नजाकत कभी वहशत है
इक इश्क़ बेख़ौफ़ तो कभी सहमा है
अश्कों का खज़ाना नूर की दौलत है
बयां ए इश्क तो और अनबूझ हुआ है
जज्बात के सुर मिले तो वहीँ बंधा है
जिस दिल में उतरा निगाहोँ में दिखा
रिश्तों में बंधा है बेबस बँध के मरा है
इश्क बरसे जहाँ रौशन वहां नज़ारा है
इश्क कहर बरपाये तो, ख़ुदा खैर करे
कभी जिंदगी देता कभी छीन लेता है
दीने-इलाही से मिला भी यही देता है
इश्क़ अपने रिवाजो से बदनाम हुआ
अलग अलग रिश्तों रस्मों में ढला है
किसी को दे गया जीवन की दौलत
कभी खौलता आग का दरिया बना है
बेमोल लूटाया तो, बेशकीमती बना है
कुछ चाहा उससे , वही बे-मौत मरा है
प्यासे इधर-उधर खोज में तड़पे भटके
जहाँ थक के बैठें, वहीँ समंदर बना है
© All Rights Reserved
No comments:
Post a Comment