सफ़ेद ही रंग ले कपास जन्मा
श्वेत काता था श्वेत ही रखना था
जुलाहे ने रंग डाले तो चित्र उभरे
कुछ भाये कुछ नागवार भी गुजरे
रंगखेल से जुलाहा थक त्रस्त हुआ
बाल कृत्य पे मुस्काया "मैं" बोला
नकलीरंग तेरे असली रंग मैं दूंगा
उत्सव नृत्य संगीत गीत मैं दूंगा
मुस्कराते पल, गुनगुनाते मौसम
जीने के बहाने नहीं तरीके मैं दूंगा
नकली फूलों में खुशबु नहीं होगी
तेरे बागों को रंगो-रौनक मैं दूंगा
लूम पे चढ़ा सफ़ेद कपास _धागा
सफ़ेद काता था,सफ़ेद ही रखना
जुलाहे ने रंग संग, लूम धो डाला
क्यूंकि शुभ्र चादर शुभ्र रखनी है
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