Sunday, 9 November 2014

लूम





सफ़ेद  ही रंग  ले  कपास  जन्मा 
श्वेत काता था श्वेत ही रखना था 

जुलाहे  ने रंग डाले तो चित्र उभरे 
कुछ भाये कुछ नागवार भी गुजरे

रंगखेल से जुलाहा थक त्रस्त हुआ  
बाल कृत्य पे मुस्काया  "मैं" बोला

नकलीरंग तेरे असली रंग मैं दूंगा
उत्सव नृत्य संगीत गीत  मैं दूंगा 

मुस्कराते पल, गुनगुनाते मौसम 
जीने के बहाने नहीं तरीके मैं दूंगा 

नकली फूलों में  खुशबु नहीं होगी 
तेरे बागों को रंगो-रौनक  मैं  दूंगा 

लूम पे चढ़ा सफ़ेद कपास _धागा 
सफ़ेद  काता था,सफ़ेद ही रखना

जुलाहे  ने रंग संग, लूम धो डाला   
क्यूंकि  शुभ्र  चादर शुभ्र रखनी है 


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