Monday, 10 November 2014

मन बावरा


मन बावरा उड़ चला गगन की ओर
दो नैन से अश्रु छल्कते बादल बनते
पवन  संग  मन बावरा उड़ चला लो 
गगन मंडल  की ओर 

सात द्वारपाल खड़े सात सुगंध लिए 
सप्तपदी संग सात सुर की शहनाई रे 
बादल डोली बना मन बावरा उड़ चला 
गगन मंडल  की ओर 

मात पिता  सगे सम्बन्धी सब छूटे 
सखियाँ लौटी, जाना है अब अकेली 
कहारों संग मन बावरा उड़ चला लो 
गगन मंडल  की ओर 

पिय ने ओढाई तारो जड़ी प्रेमचंदरिया  
इठलाती बलखाती चली मैं प्रियपयारी 
गाजे बाजे पीछे रह गए,बावरी चली मैं 
गगन मंडल की ओर 

दिया दहेज़  छोड़ी आई नहीं कुछ पास 
पीहू की चादर ओढली खाली दोनों हाथ  
पंख सा हल्का मन बावरा उड़ चला लो 
गगन मंडल की ओर 

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