दो नैन से अश्रु छल्कते बादल बनते
पवन संग मन बावरा उड़ चला लो
गगन मंडल की ओर
सात द्वारपाल खड़े सात सुगंध लिए
सप्तपदी संग सात सुर की शहनाई रे
बादल डोली बना मन बावरा उड़ चला
गगन मंडल की ओर
मात पिता सगे सम्बन्धी सब छूटे
सखियाँ लौटी, जाना है अब अकेली
कहारों संग मन बावरा उड़ चला लो
गगन मंडल की ओर
पिय ने ओढाई तारो जड़ी प्रेमचंदरिया
इठलाती बलखाती चली मैं प्रियपयारी
गाजे बाजे पीछे रह गए,बावरी चली मैं
गगन मंडल की ओर
दिया दहेज़ छोड़ी आई नहीं कुछ पास
पीहू की चादर ओढली खाली दोनों हाथ
पंख सा हल्का मन बावरा उड़ चला लो
गगन मंडल की ओर
No comments:
Post a Comment