Sunday, 23 November 2014

साधो ये मुर्दों का गाँव

साधो ! ये मुर्दों का गाँव (संतकबीर) 


ऐसा सुरूर प्रिय की मधुशाला में कहाँ 

मदिरा पीते यहाँ, माया पिलाती हाला 


बेसुध हुए मदहोश,नशा उतरता नहीं

सोये से उन्मत्त कहते वे,'हम जागे है'


कहते है वो हम नहीं नशे में तुम हो

सुजान नित्यधर्माचरण करते तो है


परिवार चलाते जीविका संघर्ष करते

हम तो देखो जगे ही है, कर्म करते है


आँखे बंद किये जो बैठे कहे हम सोये 

बोलो हमें न हमारे गुरु को,सच्चे हम


कैसे बताये मत्स्य,सब बदल जायेगा

दिखता बदलता कुछ काम न आएगा





Om Pranam

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