प्रथम प्रहर खिलौने खेलते बीता
दूजा आडंबर औ रिवाजों ने छीना
तीजा देख भीरु मन थरथर काँपा
चौथा आता देख हुआ शरणागत
दया दीनांनाथ ! करे, न थके मन
जीरा सा आया ऊँट पहाड़ के नीचे
हे चिंताहरी ! चतुर्नाथ का सु_भाव-
समर्पण स्वीकारो, सबल है भक्ति
किन्तु जीवनमोह, इक्छा है बाकी
साँझबेला सूर्यउन्मुख अस्तचल को
अँधेराछाया;मूरख डर से जीते कैसे!
ज्ञानदीप सं सः+योगी करे संकीर्तन
ससमूहभक्तो को गीतपाठ सिखाया
राधेश्याम जयहनुमान गोविन्दंभज
रामराम सीताराम भोलेशंकर भजलें
ईश्वर बाँधत्व से लौ थमी थरथराती
संकल्प कर त्रिशंकुगुरु आश्रम बनाया
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