Thursday 20 November 2014

भजमनसीतारामराधेश्याम

प्रथम  प्रहर खिलौने खेलते बीता 

दूजा आडंबर औ रिवाजों ने छीना

तीजा देख भीरु मन थरथर काँपा 


चौथा आता  देख  हुआ शरणागत 


दया  दीनांनाथ ! करे, न थके मन 

जीरा सा  आया ऊँट पहाड़ के नीचे


हे चिंताहरी ! चतुर्नाथ का सु_भाव- 


समर्पण स्वीकारो, सबल है भक्ति

किन्तु जीवनमोह, इक्छा है बाकी


साँझबेला सूर्यउन्मुख अस्तचल को 


अँधेराछाया;मूरख डर से जीते कैसे!

ज्ञानदीप सं सः+योगी करे संकीर्तन


ससमूहभक्तो को गीतपाठ सिखाया 


राधेश्याम जयहनुमान गोविन्दंभज

रामराम सीताराम भोलेशंकर भजलें


भक्तमंडली संगने चमत्कार दिखाया

ईश्वर बाँधत्व से  लौ  थमी थरथराती 

संकल्प कर त्रिशंकुगुरु आश्रम बनाया  

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