Tuesday 11 November 2014

दिव्यकमल का गीत





जादू की बांसुरी 
जादू की तान, जादू से बोल 
जादू के खेल, माया नगरी गोल गोल 

जादू के चाँद तारे
जादू की गंगा जादूगर केंद्र
गोलगोल भागते पुतले, गोलमोल खेल

हर घेरे को जीना
जीत उसे अगले पे बढ़ जाना
प्रारब्ध के धक्के है, बढ़ अगले घेरे के झोल


चेतना के विस्तार संग
खिलते खुलते कमल दल समान
पत्ते के तत्व-भाव वही, विस्तार का सब मोल


असंख्य  घेरो को भेदते
अगले घेरो की ओर उन्मुख
कमल पंखुड़ी सदृश खिलते, फैलाव है असंख्य


हर घेरे के अपने सुर
पात्र खेल भाव मिले जुले
मूलगुण युक्त 
गीत, सा से सा को बजाते जाना

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