अथक सवालों पीछे छिपी जिज्ञासा अंतहीन क्यूँ है
इधर उधर भटकते बनती दिखती क्यूँ राह तुम्हारी
सामने कल्पनाओ का विशाल समंदर लहराता है
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बस एक छलांग! अनजान में जहाँ उत्तर स्वतः तैरें
देखते है छलांग लगा के! नहीं तेरे कौन सा डूबेंगे
घूम टहल के वापिस आ अपने घर को चले जायेंगे
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तैर गए तो , सवाल बन जायेंगे खुद ब खुद जवाब
उलझन दूर ,कश्मकश मिटेगी, सुंदर होगा प्रकाश
झूठे मायावी सहारे कब तक कितनी दूर देंगे साथ
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इक दिन तो बैसाखी छोड़ , अकेले ही होगा बढ़ना
तो क्यूँ ना खड़े हो अपने कदमो पे ! जीवन अपना
मति गति अपनी मुक्ति शक्ति अपनी हो भक्ति
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