Tuesday, 25 November 2014

मति गति अपनी मुक्ति शक्ति अपनी हो भक्ति



अथक सवालों पीछे छिपी जिज्ञासा अंतहीन क्यूँ  है 

इधर उधर भटकते  बनती दिखती क्यूँ राह तुम्हारी 

सामने कल्पनाओ का विशाल  समंदर लहराता  है 
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बस एक छलांग! अनजान में जहाँ उत्तर स्वतः तैरें

देखते है छलांग लगा के! नहीं  तेरे  कौन सा डूबेंगे 

घूम टहल के वापिस आ अपने घर को चले जायेंगे 
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तैर गए तो , सवाल बन जायेंगे खुद ब खुद जवाब 

उलझन दूर ,कश्मकश मिटेगी, सुंदर होगा प्रकाश 

झूठे मायावी सहारे कब तक कितनी दूर देंगे साथ  
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इक दिन तो बैसाखी छोड़ , अकेले  ही होगा बढ़ना 

तो क्यूँ ना खड़े हो अपने कदमो पे ! जीवन अपना

मति गति अपनी  मुक्ति शक्ति अपनी हो भक्ति

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