Monday 3 November 2014

मत्स्यमन - और - माया




उछाल लेता विशाल समंदर 

मत्स्य प्यासी अंतर्मन तक



श्वांस श्वांस माया को पीती

तैरती उसी मे उसी में रहती


माया से बाहर सांस न आती 

माया के अंदर भी छटपटाती


माया-सागर अंदर रह के भी

क्यूँ कर तेरी क्षुधा ना जाती


मत्स्यमन मत्स्यबुद्धि मय

जान ले अब माया-अस्तित्व


विस्तृत गहराई ऊंचाई भीतर 

अगाध  नीर तेरा मूल निवास

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