Saturday 29 November 2014

राजा हूँ अपने राज्य का

This place where you are right now, God circled on a map for you -Hafiz 


ग़ाफ़िल भुला हुआ 
भटका  हुआ  राही 
तुम  कहाँ मिले ये 
याद तो  नहीं मुझे 
पहुंचादिया किसने  
मेरी  ऊँगली  थाम 
खड़ा ऐसी जगह पे 
आसमान ओ जमीं 
साँझबेला हुई सुर्ख
दोनों जहाँ  गुलाबी 
हस्थि अश्व  युक्त 

सु - सज्जित द्वार 

स्वागत  दीप  जले 
गाती   वंदन  गान
स्वागत  का   गाते 
लाल   कालीन   पे 
चलते , दोनों  छोर 
से  होती पुष्प वर्षा 
हम  राजा  वहां  के 
ऐसा सभी कह  रहे 
हम अचरज से भरे 

ओह कहाँ आये हम 

खुद से लगे बुबुड़ाने 
सुखद  सशंकित से 
भाव संयुक्त रास्ता 
लम्बा ...मीलों चले 
वे  कैसी सिसकियाँ 
द्वार  से  ठीक पूर्व 
पीछे  पड़ी थी , मुड़े 
पाया  सैकड़ों  शक्ले
चलते बादलों सी वे 
फैलेहाथ नीरबहाती 
ऐसा शोर सुना नहीं 


एक प्रश्न सहज उठा 

वे   समस्त  अभ्यास 
किया था  वर्षो  जिसे 
योग  साधना   कहते 
जिस मैंल को छुड़ाया
जतन से, सप्रयास हो 
चादर धरी तहा सफ़ेद 
छली थे  प्रयास धुआं  
सब  माया  दृशय  थे 
कोहरे तले धूल गुबार 

न कर्म न धर्म प्रपंच 

कुछ था ही नहीं वहां 
बस  समय  की नदी 
बहती फिसलती गई  
और हम अब  समय
से बाहर खड़े, मुड़ के 
देख रहे उस नदी को 
जहाँ से आवाजें उठ 
मन  भेदना  चाहती
अरे ! मायावी  माया  


फिर दोबारा शंकित 

आगे को देखा,पाया 
ओह! यहाँ  भी  हम 
मध्य  में  ही खड़े थे 
आगे स्वागत  गान  
कलशकलेवर युक्त 
दुंदुभी  साज , मधुर 
गीतस्वरलहर,पुष्प -
वर्षा,सुगंधछिड़काव 
भिन्न सुखपरिभाषा 
न  दुःख नुक्ताचीनी 
ठीकपीछे पलटदेखा 
वे  चिड़ों  का बेवजह 
झगडे  चोंच चुभोना  
पल में थे घायलपड़े 
रक्त-रंजीत धरा  पे 
संगीत वे सब गारहे 
भूले  समक्ष वहां का 
कर्कशराग विषपान 

खड़ा  इस  मध्य  में 
घना   गहरा  कोहरा 
दूजी  तरफ   प्रकाश 
धुंधलका  स्पष्ट  हो 
प्रखर प्रकाश  समक्ष 
श्वेतशब्दातीतधवल 
रौशनीस्नानसंयुक्त 
सुखद  आनंद  परम 

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