Sunday, 9 November 2014

वे जीव अदृश्य थे





जब भी जमीं से ऊपर को देखा
खूबसूरती  फैली दिखी सर्वत्र विस्तार विराट की    

एक बार सौभाग्य से ऊपर से देखा 
वही खूबसूरती फैली पायी विस्तार से विराट की 

नदिया दिखी लहरें फेंकते किनारे दिखे 
पर्वत-रेखाएं, सूरज साफ़ चमकता, चाँद तारे दिखे

अगर कुछ नहीं देख पाया तो वो
रक्त की बहती नदियां, वो बारूद उगलती टोलियां 

अगर कुछ नहीं देख पाया तो वो  
रक्त बहाते सीमायें खींचते वो दरिंदे दानव मानव 

अस्तित्वविहीन थे वे उस ऊंचाई से 
कीड़े से भी छोटे थे पर अस्तित्व से अहंकार बड़े थे 

धरती के धूलकण  भी स्पष्ट थे  
किन्तु हाड़मांस के सर्वदोषयुक्त वे जीव अदृश्य थे 

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