जब भी जमीं से ऊपर को देखा
खूबसूरती फैली दिखी सर्वत्र विस्तार विराट की
एक बार सौभाग्य से ऊपर से देखा
वही खूबसूरती फैली पायी विस्तार से विराट की
नदिया दिखी लहरें फेंकते किनारे दिखे
पर्वत-रेखाएं, सूरज साफ़ चमकता, चाँद तारे दिखे
अगर कुछ नहीं देख पाया तो वो
रक्त की बहती नदियां, वो बारूद उगलती टोलियां
अगर कुछ नहीं देख पाया तो वो
रक्त बहाते सीमायें खींचते वो दरिंदे दानव मानव
अस्तित्वविहीन थे वे उस ऊंचाई से
कीड़े से भी छोटे थे पर अस्तित्व से अहंकार बड़े थे
धरती के धूलकण भी स्पष्ट थे
किन्तु हाड़मांस के सर्वदोषयुक्त वे जीव अदृश्य थे
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