Sunday, 16 November 2014

परिवर्तन



रुकना नहीं, तुझे बढ़ते रहना है 
जो मिले;आत्मसात कर बढ़ना 

नामंजूर  है  प्रकर्ति  को  रुकना 
बहते  ही  जाना, बहते ही जाना 

धूल बनी पर्वत , फिर बने धूल 
धूल से बने फुल, फूल बने धूल 

खनन आभूषण, फिर हो खनन
जल बने भाप ,  वाष्प बने जल 

लहर अभी उठी, और फिर गिरी 
हवा अब बही , लो अब हुई घुप्प 

अभी जीव जन्मा लिखी है मौत 
परिवर्तन निरंतर  बहता दरिया  

कालगाल प्रवेश शीतल सुलगता
फिसलाता संगमें बहाता लेजाता 

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