13 june,14; Kabir Jayanti
नहीं ढूंढते थे तब तक जमाना हमारा था
ढूंढा जो बंद चुटकी से राख भी उड़ गयी !
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" न ही परखन दीजिये न तो परखिये कोई
परखे से कुछ न मिले और परख दुःख होइ ! "
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किससे दोस्ती कीजिये और निभाइए बैर
चुटकी के साथी सभी, ढोल खोल के बोल !
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ज्ञान आवे आप से जुगत सिखाया न जाए
सर पिटे फल ना लगे , ऋतू आवे लग जाये !
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भाव अनुभव बेमोल रखिये धीरज साथ
प्रेम निमंत्रण दीजिये , परमनेह के साथ !
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कुटिया बने कर्म से भाग से बन न जाये
भाग भरोसे जो रहे कर्म के फल से जाये !
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भाग कर्म संग चले अलग किया नहीं जाये
एक के बदले कर्म कटे तो दूजा बदले भाग !
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हीरा किस से कब कहे, परख खरीदो मोये
सूरज किरण चमक लगे खुद हीरे का मोल !
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मोती गहरे पाइए ऊपरी मिले सो फेन
गहरे अनुभव ज्ञानी के ऊपर थुथले बैन !
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