माना गुल भी होंगे ये गुलशन भी होंगे ज़रुर
नुमाइशैं कारोबार भी सलामत होंगे !
ऐ दोस्त !!
शक्लें अक़्लें भी वक्ती है बदल जाती है
बदलते वक्त में हर नूर बिखर जाता है
ऐ दोस्त !!
वख्त की गर्त में हर शय दफ़न होती पायी
इबादतें मुहब्बतें जश्न के मुगालते हैं
ऐ दोस्त !!
बदलते वक्त के इस हुनर को मान जाओ
खाली सपनो में न उलझाओ अब ,
ऐ दोस्त !!
कुछ भी सुनके अब न बहला पाएंगे खुद को
झिलमिलाते सपने वो भी जो खयाली हों ,
ऐ दोस्त !!
साथ सचाई के रगीं जाम पीना मंजूर है यारा
लुत्फ़ का मज़ा "आज" तुम भी उठाओ,
ऐ दोस्त !!
हाथ में ज़ाम उठा ओ ज़ाम से ज़ाम मिला दोस्त
के भूल जा सब और मुझको भी भूल जाने दे !
ऐ दोस्त !!
ऐ दोस्त !! ……………………ऐ दोस्त !!
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