Saturday 21 June 2014

ऐ दोस्त !!




माना  गुल भी होंगे  ये गुलशन भी होंगे ज़रुर 
नुमाइशैं  कारोबार भी सलामत होंगे ! 
ऐ दोस्त !!

शक्लें  अक़्लें  भी  वक्ती  है  बदल  जाती  है   

बदलते वक्त में  हर नूर बिखर जाता है  
ऐ  दोस्त !!

वख्त की गर्त  में हर  शय  दफ़न  होती  पायी 

इबादतें  मुहब्बतें जश्न  के  मुगालते  हैं  
ऐ दोस्त !!

बदलते  वक्त  के  इस  हुनर  को मान  जाओ  

खाली  सपनो  में  न  उलझाओ  अब  , 
ऐ  दोस्त !!

कुछ  भी  सुनके  अब न बहला  पाएंगे  खुद को  

झिलमिलाते सपने वो भी जो खयाली  हों 
ऐ  दोस्त !!

साथ  सचाई  के रगीं जाम  पीना  मंजूर  है यारा 

लुत्फ़  का  मज़ा  "आज" तुम  भी  उठाओ,  
ऐ  दोस्त !!

हाथ में ज़ाम उठा ओ ज़ाम से ज़ाम मिला दोस्त 

के भूल जा सब और मुझको भी भूल जाने दे !    
ऐ  दोस्त !!  

ऐ  दोस्त !! ……………………ऐ  दोस्त !!




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