कमरे की खिड़की से बाहर झांकती बालकनी में
मिटटी का गमला रखा खाली उदास उत्साहहीन
उसमे एक पौधा लगाया दे दिया पूरा प्यार उसे
रोज ही देखते थे उसमे नए उभरते जीवन को
गीली मिटटी से कब फूटेगी जीवन कोपल कोमल
दिन में बस पास ही टकटकी लगाये बैठे रहते
दो पत्तियां लगी उसमे नवजीवन के उत्साह सी
दो से चार चार से आठ, पुष्प कली खिलने लगी
लाल रंग की आभा थी वो मेरे प्रेम की छाया थी
जाने कब दिल दे दिया उस नव जीवन को हमने
पागल दिल की धड़कन बन बैठा वो प्यारा पौधा
बुढ़ापे के सहारे पे ,प्रेम विश्वास मिलाया यूँ हमने
ये जियेगा , सांस लेगा जब तक मैं भी जियुंगी
आखिरी पत्ती तलक मैं भी सांस लुंगी साथ में
उम्रदराज हो चली थी , तबियत भी नासाज थी
पर उम्मीदें और मोहब्बत जोड़ ली उस के साथ
एक नजर घडी की सुई पे औ दूजी खिलते पौधे पे
एक दिन माथा ठनका क्यों पत्तिया झरने लगी
आठ से छह हुई छह से चार और चार से दो हुई
बा-दस्तूर सोच के तबियत बिगड़नी शुरू हो गयी
और हम बिस्तर पे लेटे बीमार देखते रहे पौधे को
दो में से लो! फिर एक पत्ती कम हुई , एक ही बची
साँसे अब भारी हो चली उस पीली पत्ती के साथ
उफ़ ! ये आखिरी पत्ती भी बस अब ढलकने को है
ऑंखें अपलक देख रही थी उसी पत्ती को; कि उस-
देर रात पत्ती गिर पड़ी,घडी की सुई भी थम गयी!
O. HENRY, द्वारा लिखी , बचपन में सुनी कहानी THE LAST LEAF से प्रभावित कविता
© All rights reserved
No comments:
Post a Comment