नाद का स्वर गूंजा लहरी बन प्रेम का जो गीत घुमड़ा
ब्रह्मनाद बन शिव_डमरू का डम-डम बोल गूंज उठा
वो क्या तुम सुन पाये हो !
टपटप झरती पानी की बूंदे उसपे इठलाते वृक्ष- वन्द
वो क्या तुम सुन पाये हो !
सागर की मचलती अनगिनत तरंग पे जन्मता संगीत
थाप देती उन्नत लहरों की तर्ज पे थिरकती मछलियाँ
वो क्या तुम सुन पाये हो !
झूमते फूलों का गायन उनपे रंगीन डोलती तितलियाँ
वो क्या तुम सुन पाये हो !
भाषायी_नरमाई_गरमायी न कह पाना , न सुन पाना
बोलबोलती भाषाओँ का मौन उन्मुख हो सरकते जाना
वो क्या तुम सुन पाये हो !
माँ ने स्नेह से अपने आँचल में बाँध कसा जब लाल को
पितृ_स्नेह की उठती_तड़पती_मचलती_आशीश_तरंगें
वो क्या तुम सुन पाये हो !
परमात्मा की लय पे थिरकती आत्मा की जुड़ती रिद्म
आस्मानी बांसुरी की मधुरआवाज की जादू फैलाती धुन
वो क्या तुम सुन पाये हो !
आस्मानी बांसुरी की मधुरआवाज की जादू फैलाती धुन
वो क्या तुम सुन पाये हो !
जल - थल - नभ ने मिलजुल कर जो सुन्दर गीत सजाया
फिर संगीत दिया, धुन पे झंकृत हुए वाद्य को गीत दिया
वो क्या तुम सुन पाये हो !
शक्तिहीन संयुक्तशक्तियुक्त बुद्धि से क्या जी पाये हो !
सम्बन्धो के इस क्षणिक गीत को क्या तुम सुन पाये हो!
दिल में बजती धड़कन उसमें भी बजते धकधक गीत को-
जीवन के शाश्वत गीत संगीत को क्या तुम सजा पाये हो !
वो क्या तुम सुन पाये हो !
वो क्या तुम सुन पाये हो !
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Ati sundar
ReplyDeletemany blessings , thanks Swati
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