Sunday, 8 June 2014

वो क्या तुम सुन पाये हो !




नाद का स्वर गूंजा लहरी बन प्रेम का जो गीत घुमड़ा
ब्रह्मनाद बन शिव_डमरू का डम-डम बोल गूंज उठा  
वो क्या तुम सुन पाये  हो !



जल-प्रपात  बहता कलकल छलछल कोयल कुहूगान 
टपटप झरती पानी की बूंदे उसपे इठलाते वृक्ष- वन्द 
वो क्या तुम सुन पाये  हो !


सागर की मचलती अनगिनत तरंग पे जन्मता संगीत
थाप देती उन्नत लहरों  की तर्ज पे थिरकती मछलियाँ
वो क्या तुम सुन पाये  हो !



घुमड़ते  बादलो के ठुमकने पे बिजलियों का चमकना 
झूमते फूलों का गायन उनपे रंगीन डोलती तितलियाँ
वो क्या तुम सुन पाये  हो !


भाषायी_नरमाई_गरमायी न कह पाना , न सुन पाना 
बोलबोलती भाषाओँ का मौन उन्मुख हो सरकते जाना 
वो क्या तुम सुन पाये  हो !


माँ ने स्नेह से अपने आँचल में बाँध कसा जब लाल को
पितृ_स्नेह की उठती_तड़पती_मचलती_आशीश_तरंगें 
वो क्या तुम सुन पाये  हो !



रमात्मा की लय पे थिरकती आत्मा की जुड़ती रिद्म
आस्मानी बांसुरी की मधुरआवाज की जादू फैलाती धुन 
वो क्या तुम सुन पाये  हो !


जल - थल - नभ ने मिलजुल कर जो सुन्दर गीत सजाया
फिर संगीत दिया, धुन पे झंकृत हुए वाद्य को गीत दिया  
वो क्या तुम सुन पाये  हो !


शक्तिहीन संयुक्तशक्तियुक्त बुद्धि से क्या जी पाये हो ! 

सम्बन्धो के इस क्षणिक गीत को क्या तुम  सुन पाये हो!

दिल में बजती धड़कन उसमें भी बजते धकधक गीत को-

जीवन के शाश्वत गीत संगीत को क्या तुम सजा पाये हो !


वो क्या तुम सुन पाये  हो !

वो क्या तुम सुन पाये  हो !

वो क्या तुम सुन पाये  हो !




































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