Thursday, 12 June 2014

चाँद ! अखंडमौनव्रतलीन तू


चाँद !अखंडमौनव्रतलीन तू 
प्रकृति की नियत चाल है सहता   

किसी से मोह न ही प्रेम का नाता 
भावनाओं का तूफां व्यर्थ उठाता जाता  

सबके दिलों में पाश-फांस बांधता रहता 
आत्माओं को मोहक छल भ्रमित करता रहता 

नितनूतन बदलाव आकार रूप  बदलता रहता 
मौन  परिक्रमा करता रहता गंतव्य पे बढ़ता चलता 

भाग्यशाली बन परमयोगीसिद्धयोगेश्वर संग रहता 
कर्म_गति कर्म_फेरे कर्म_बंध कर्म_प्रधानता सिखाता चलता  

कर्मप्रधान विश्व बना , कर्मयुक्त देह, कर्मफलमुक्त जीवन अब बन मेरे 
कर्मयोगी , कर्मभोग फलमुक्त , अच्युत , कर्मपथ की राह पर चल संग मेरे 

© All rights reserved

No comments:

Post a Comment