चाँद !अखंडमौनव्रतलीन तू
प्रकृति की नियत चाल है सहता
किसी से मोह न ही प्रेम का नाता
भावनाओं का तूफां व्यर्थ उठाता जाता
सबके दिलों में पाश-फांस बांधता रहता
आत्माओं को मोहक छल भ्रमित करता रहता
नितनूतन बदलाव आकार रूप बदलता रहता
मौन परिक्रमा करता रहता गंतव्य पे बढ़ता चलता
भाग्यशाली बन परमयोगीसिद्धयोगेश्वर संग रहता
कर्म_गति कर्म_फेरे कर्म_बंध कर्म_प्रधानता सिखाता चलता
कर्मप्रधान विश्व बना , कर्मयुक्त देह, कर्मफलमुक्त जीवन अब बन मेरे
कर्मयोगी , कर्मभोग फलमुक्त , अच्युत , कर्मपथ की राह पर चल संग मेरे
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