Sunday, 8 June 2014

प्रिय प्रेरणा





शीतल  बहे तू जलधार  सी 
विचरे पर्वत_ह्रदय-मध्य से 
बंजर  धरती को सींचती तू 
आह ! भाव  बन प्रिय प्रेरणा.......

हर  पुष्प  को नेह मुस्कान 
बालक  से मन  को नृत्य दे 
पीड़ित  ह्रदय को गान दे तू 
प्रेमी  ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........

दग्ध  पाषाण को चन्दन कर 
प्यासे  की  क्षुधा  शांत  कर 
रूखे पत्तो पे रह तू ओस  बन  
वोह  ! भाव  बन प्रिय प्रेरणा........

मस्ती  बस्ती  गूंजे  कलरव  
मन संपन्न सुखी हो निर्भय 
सन्तापित तन  कोई  न हो 
करुन !  भाव बन प्रिय प्रेरणा........


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