शीतल बहे तू जलधार सी
विचरे पर्वत_ह्रदय-मध्य से
बंजर धरती को सींचती तू
आह ! भाव बन प्रिय प्रेरणा.......
हर पुष्प को नेह मुस्कान
बालक से मन को नृत्य दे
पीड़ित ह्रदय को गान दे तू
प्रेमी ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
दग्ध पाषाण को चन्दन कर
प्यासे की क्षुधा शांत कर
रूखे पत्तो पे रह तू ओस बन
वोह ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
मस्ती बस्ती गूंजे कलरव
मन संपन्न सुखी हो निर्भय
सन्तापित तन कोई न हो
करुन ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
विचरे पर्वत_ह्रदय-मध्य से
बंजर धरती को सींचती तू
आह ! भाव बन प्रिय प्रेरणा.......
हर पुष्प को नेह मुस्कान
बालक से मन को नृत्य दे
पीड़ित ह्रदय को गान दे तू
प्रेमी ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
प्यासे की क्षुधा शांत कर
रूखे पत्तो पे रह तू ओस बन
वोह ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
मस्ती बस्ती गूंजे कलरव
मन संपन्न सुखी हो निर्भय
सन्तापित तन कोई न हो
करुन ! भाव बन प्रिय प्रेरणा........
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