Friday, 20 June 2014

नयेपन की तलाश




च  कहना  अच्छा लगता है सुनना अच्छा नहीं लगता, 
दिखाना तो अच्छा लगता है , देखना अच्छा नहीं लगता


यूँतो जेब में दिखाने को आईना साफ़सुथरा लिए फिरते है
उसमे हर वक्त अपनी ही सूरत देखना अच्छा नहीं लगता   

सच झूठ की बेबुनियाद लड़ाई में काटते है कट भी जाते है 
मनुष्यता का खेल, दहशतगर्द बने कुछ शहीद बन जाते है

सपने दुसरो को देना बेचना तो बहुत अच्छा लगता ही है
साथ खुद भी यहाँ सपने देखना बहुत ही अच्छा लगता है

रोज  नयी धुन खोजना बना के सजाना अच्छा लगता है

धुल  की  पर्तों  में दबा  उघाड़ना कुछ अच्छा नहीं लगता

यही सूरत है की रोज कुछ  नया सुने देखे करे भागे दौड़े
वो ही रोज एक ही गीत को दोहराना अच्छा नहीं लगता

जिंदगी के अक्स में रोज ही  नयापन ढूढ़ने में मशगूल है
दिल के आईने में रोज नयी सूरत हो अच्छा नहीं लगता

नामुमकिन - मुमकिन के दो घूमते चाकों बीच घूमते तो है
मुमकिन का नामुमकिन में फिर जाना अच्छा नहीं लगता

जो भी बदल सकते थे मसरूफ से,बदलते ही जाते है रोज
कमियों का स्वर बदल 
बदल खटखटाना अच्छा लगता है 


मूर्खिस्तान वासी खुश ,चलो कमी ही सही पर नयी तो है!
कल दौड़ाया था उन्ने अब इनका दौड़ाना अच्छा लगता है





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